आदित्यनाथ को सांप्रदायिकता भड़काने की छूट दे रहा है चुनाव आयोग

yogi aadityanathपिछले दिनों मीडिया में आए वीडियो पर योगी आदित्यनाथ द्वारा इसके पीछे नक्सलियों का हाथ होने के बयान पर इस वीडियो के मूल स्रोत डॉक्यूमेंट्री फिल्म सैफ्रन वार के फिल्मकारों ने इसे उल-जलूल हरकत कहते हुए इसे फिल्म में उठाए गए दलितों के हिन्दूकरणमहिला हिंसादेश विरोधी विदेशी संगठनों से योगी के गठजोड़ और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या में इस राजनीति की भूमिका से ध्यान हटाने की कोशिश बताया है।

डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार शाहनवाज आलम, राजीव यादव और लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि जिस तरह बार-बार योगी वीडियो को कभी इसे अपना तो कभी इस कट-पेस्ट बता रहे हैं, लेकिन हमने पहले भी मीडिया द्वारा इस बात को संज्ञान में लाया है कि इस वीडियो के मूल स्रोत को न्यायालय से लेकर चुनाव आयोग सभी को सौंपा जा चुका है। पर सरकार योगी पर कार्यवाई से ज्यादा सिर्फ चुनावी प्रोपेगंडे तक इसे देख रही है तो वहीं योगी की सांप्रदायिक राजनीति इसका फायदा लेना चाहती है। यह पूरा वीडियो 2008 में आजमगढ़ में हुए उपचुनाव का है, ऐसे में जब इसे साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने वाला माना जा रहा है तब चुनाव आयोग जिसकी जिम्मेदारी चुनाव के दरम्यान चुनावी सभाओं को कैमरे से रिकॉर्ड करने की होती है, उसे अपना वीडियो सामने लाकर इस वीडियो की वास्तविकता पर उठाए जाने वाले प्रश्नों पर अपना पक्ष रखना चाहिए। ऐसा न करके चुनाव आयोग अपनी जवाबदेही से तो बच ही रहा है इसके साथ ही योगी को बचाने वाले अपने साम्प्रदायिक अधिकारियों को भी बचा रहा है।

जेयूसीएस के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी उमेश सिन्हा द्वारा भड़काऊ और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा उत्पन्न करने वाले भाषण देने वाले योगी आदित्यनाथ को उपचुनाव में प्रचार से दूर रखने के सवाल पर यह कहना कि वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि आयोग किसी से भेदभाव नहीं करता, अपने आप में संविधान विरोधी कदम है। क्योंकि चुनाव आयोग का काम ही सामाजिक भेद-भाव और वैमन्स्य फैलाने वाले नेताओं पर लगाम कसकर लोकतंत्र की गरिमा को बचाना है। अगर चुनाव अधिकारी यह कहते हैं कि आयोग किसी से भेद-भाव नहीं करता तो इसका स्पष्ट मतलब यही है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कराने के लिए भड़काऊ भाषण देने वालों के समर्थन में वह खड़ा है और उनके इनके इस सांप्रदयिक एजेंण्डे में वह हर मुमकिन मदद भी कर रहा है।

सांप्रदायिकता व वैमनस्य फेलाने वालों के खिलाफ कार्यवाई न करने वाले चुनाव अयोग के रवैए पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘सैफ्रन वार’ के फिल्मकारों ने कहा कि 2008 में आजमगढ़ उपचुनाव में भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने एक हिन्दू के बदले दस मुसलमानों को मारने, एक हिंदू लड़की के बदले 100 मुस्लिम लड़कियों को हिन्दू बनाने और मुसलमानों को अरब के बकरों की तरह काटने, बाबरी मस्जिद की तरह ही आजमगढ़ की मस्जिदों को ढहाने जैसे सांप्रदायिक आतंकी भाषण दिए। शिकायत करने के बावजूद 2008 में चुनाव आयोग और आजमगढ़ प्रशासन द्वारा इस पर कोई कार्यवाई न करने पर हमने 2009 लोकसभा चुनावों के दौरान न्यायालय, चुनाव आयोग के संज्ञान में भी इस बात को लाया। अब जब फिर से 2014 में भी मीडिया में जब यह वीडियो आया तो इसके सांप्रदायिक और विवादास्पद भाषा होने को लेकर लगातार बहस हो रही है पर चुनाव आयोग जो छोटी-छोटी बातों को संज्ञान में ले लेता है उसके संज्ञान में आने पर भी जिस तरह इसको 2008 से लगातार टाला जा रहा है उससे साफ है कि देश में चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं आचार संहिता के नाम पर सांप्रदायिकता का संरक्षण कर रही हैं।
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