मूल: जया जादवानी
1. स्त्री
‘तहखानों में तहखाने
सुरंगों में सुरंगें
ये देह भी अजब ताबूत है
ढूंढ लेती हूँ जब ऊपर आने के रास्ते
ये फिर वापस खींच लेती है.’
2. देह स्वप्न
‘ले गया कपड़े सब मेरे
दूर…..बहुत दूर
काल बहती नदी में
मैं निर्वसना
तट पर
स्वप्न देखती देह का’
3.
‘जैसे हाशिये पर लिख देते हैं
बहुत फालतू शब्द और
कभी नहीं पढ़ते उन्हें
ऐसे ही वह लिखी गयी और
पढी नहीं गयी कभी
जबकि उसी से शुरू हुयी थी
पूरी एक किताब .’
4.
‘वह पलटती है रोटी तवे पर
और बदल जाती है पूरी की पूरी दुनिया
खडी रहती है वहीँ की वहीँ
स्त्री
तमाम रोटियां सिंक जाने के बाद भी .
पता:बी-136, वी.आई.पी. एस्टेट, विधान सभा मार्ग, रायपुर (छत्तीसगढ़)
सिंधी अनुवाद: देवी नागरानी
स्त्री -1
‘तहखानन में तहखाना
सुरंगुन में सुरंगूँ
हीअ देह बि अजब ताबूत आहे
गोल्हे वठाँ थी जडहिं मथे अचण जा रस्ता
हीअ वरी वापस छिके थी वठे.’
2. देह स्वप्न
‘खणी वयो सब कपड़ा मुहिंजा
परे ….घणों परे
कालु वहंदड़ नदीअ में
माँ निर्वसना/ निर्वस्त्र
किनारे ते
सपुनो डिसां देह जो’
3.
‘जींअ हाशिये ते लिखी छड़ींदा आहिन
घणा फालतू अखर ऐं
कडहिं पढंदा नाहिन तिन खे
ईंअ ई हूअ लिखी वई ऐं
कडहिं न पढ़ही वई
हालांकि उन्हीअ सां शुरू थ्यो हो
समूरो हिकु किताबु.’
4.
‘हूअ उथलाईन्दी आहे तए ते रोटी
ऐं बदलजी वेंदी आहे समूरी दुनिया
बीठी हूंदी आहे उते जो उते
स्त्री
तमाम रोटियूं सेकजी वजण खाँ पोइ बि.’
पता; ९-डी॰ कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/ ३३ रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५० फ़ोन: 9987938358