एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर जिस तरह गत 13 दिसम्बर को राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जश्न मनाकर अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाई। ठीक उसी प्रकार राजस्थान लोक सेवा आयोग के कामचलाऊ अध्यक्ष डॉ. आर.डी सैनी ने भी 31 दिसम्बर को 100 दिन पूरा होने पर 31 दिसम्बर को पत्रकारों के समक्ष अपने कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाई। हालांकि सैनी ने सीएम राजे की तरह सौ दिन के कार्यकाल का कोई जश्न तो नहीं मनाया, लेकिन पत्रकारों के समक्ष यह दावा किया कि सौ दिन पहले सरकार ने जब उन्हें कामचलाऊ अध्यक्ष नियुक्त किया। तब आयोग के हालात बेहद बिगड़े हुए थे। यहां तक कि आयोग के अधिकारियों और कर्मचारियों का मनोबल भी गिरा हुआ था। ऐसे गंदे माहौल को उन्होंने सौ दिन में सुधार दिया। अब आयोग का कामकाज पटरी पर आने लगा है और परीक्षाएं भी समय पर करवाने के प्रयास हो रहे हैं। सैनी का दावा अपनी जगह है, लेकिन समझ में नहीं आता कि आखिर सैनी एक राजनीतिक दल की तरह अपनी उपलब्धियां कैसे गिनवा रहे हैं? आयोग में अध्यक्ष सहित सात सदस्यों का प्रावधान है, लेकिन इस समय आयोग में काम चलाऊ अध्यक्ष सैनी सहित मात्र तीन सदस्य हैं। सैनी क्या बता सकते हैं कि तीन सदस्य आयोग का काम पटरी पर कैसे ला सकते हैं? क्या सैनी सरकार को यह संदेश देना चाहते हैं कि यदि उन्हें स्थायी अध्यक्ष बना दिया जाए तो वे दो सदस्यों से ही आयोग का काम चला लेंगे?
सब जानते हैं कि सैनी की नियुक्ति गत कांग्रेस के शासन में हुई थी। सैनी तो प्रदेश की हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष थे, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मेहरबानी से सैनी आयोग के सदस्य के महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त हो गए। सैनी ने अकादमी के अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्हीं किताबों को प्रकाशित करवाया जो कांग्रेस की विचारधारा की थीं। मालूम हो कि हिन्दी ग्रंथ अकादमी अपने खर्चे पर प्रदेश के साहित्यकारों की किताबों का प्रकाशन किया है। शायद अब भाजपा सरकार की मिजाजपुर्सी करके सैनी आयोग का स्थायी अध्यक्ष बनना चाहते हैं। आयोग के कामकाज से प्रदेशभर के युवा कितने परेशान हैं। इसका अंदाजा शायद सैनी को नहीं है। प्रतिवर्ष होने वाली परीक्षाएं भी चार-चार वर्षों से नहीं हो पाई है। जिन परीक्षाओं के परिणाम घोषित किए गए हैं उन्हें भी बार-बार अदालतों में चुनौती दी जा रही है। पता नहीं किस सोच के साथ सैनी अपनी उपलब्धि गिनवा रहे है, जबकि सैनी ने भी उन्हीं हबीब खां गौराण के साथ काम किया, जिनकी तलाश अब एसओजी कर रही है। क्या सैनी को नहीं पता था कि गौराण के कार्यकाल में आयोग में क्या-क्या हो रहा है। यदि गौराण ने परीक्षाओं और प्रश्न पत्रों में कोई गड़बड़ी की तो सैनी भी सदस्य होने के नाते अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। अच्छा होता कि गौराण के फंसने के बाद सैनी भी सदस्य के पद से इस्तीफा देकर अपने धर चले जाते। सैनी को प्रदेश के उन बेरोजगार युवाओं की पीड़ा को समझना चाहिए जो दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अपनी उपलब्धि गिनाने की बजाए सैनी को कम से कम इतना तो करना ही चाहिए था कि सरकार से आयोग में सदस्यों के साथ-साथ अधिकारियों और कर्मचारियों की भर्ती की मांग करते।
-(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)