आम अवाम के लिए ‘अच्छे दिन’ न आने थे और न आये

अनुपम शर्मा
अनुपम शर्मा

मोदी सरकार के पिछले नौ महीने जनता के बुनियादी अधिकारों की कीमत पर देश के शोषक वर्गों के हितों को सुरक्षित करने और उन्हें तमाम तरह से फायदे पहुँचाने के इन्तज़ाम करने में ही बीते हैं। आम अवाम के लिए ‘अच्छे दिन’ न आने थे और न आये, लेकिन अपने पूँजीपति आकाओं को अच्छे दिन दिखाने में मोदी ने कोई कसर नहीं उठा रखी। मज़दूरों और ग़रीबों की बात करते हुए सबसे पहला हमला बचे-खुचे श्रम अधिकारों पर किया गया। पहले राजस्थान सरकार ने घोर मज़दूर-विरोधी श्रम सुधार लागू किये और उसी तर्ज़ पर केन्द्र में श्रम क़ानूनों में बदलाव करके मज़दूरों के संगठित होने तथा रोज़गार सुरक्षा के जो भी थोडे अधिकार कागज़ पर बचे थे, उन्हें भी निष्प्रभावी बना दिया। योजना आयोग को ख़त्म करके बने नीति आयोग का उपाध्यक्ष जिन अरविन्द पनगढ़िया को बनाया गया है वे ही राजस्थान की भाजपा सरकार के श्रम सुधारों के मुख्य सूत्रधार रहे हैं। पनगढ़िया महोदय सारा जीवन अमेरिका में रहकर साम्राज्यवादियों की सेवा करते रहे हैं और खुले बाज़ार अर्थव्यवस्था तथा श्रम सम्बन्धों को ‘लचीला’ बनाने के प्रबल पक्षधर हैं। इससे पहले मुक्त बाज़ार नीतियों के एक और पैरोकार अरविन्द सुब्रमण्यन को प्रधानमंत्री का मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया जा चुका है।मोदी सरकार के तमाम पाखण्डपूर्ण दावों के बावजूद सच यही है कि यह उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को ज़ोरजबरदस्ती से लागू करेगी और इनसे मचने वाली तबाही के कारण जनता के असन्तोष को बेरहमी से कुचलेगी तथा लोगों को आपस में लड़ाने के लिए साम्प्रदायिक फासीवादियों के हर हथकण्डे का इस्तेमाल करेगी।
अनुपम शर्मा

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