क्या आप भी चाहते हैं कि आपके बेटे-बेटीयां आप जैसे हों

क्या आप भी चाहते हैं कि आपके बेटे-बेटीयां वो ही सोचे, वो ही कहे, वो ही करें जैसा आप सोचते, करते या कहते हैं ?

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

साधारणतया हर माता पिता यही चाहते हैं कि उनकी संतान उनके प्रत्येक सपने को पूरा करें, उनकी हर बात को मानें, वैसा ही सोचेँ जैसा वो लोग सोचते हैं, अपनी बातों को पूरा करवाने के लिये वे जोर-जबरदस्ती भी कर बैठते हैं, इससे माता-पिता एवं उनकी संतान के मध्य रिस्ते तनावपूर्ण बन जाते हैं और उनके बीच अविश्वास की ऊँची- ऊँची दिवारें भी खड़ीं हो जाती है |
सच तो यह है कि आप, आपकी संतान (पुत्र/पुत्री ), पत्नी एवं अन्य सगे सम्बन्धी अलग अलग आत्मायें हैं तथा वें सब अपने अपने पूर्व संस्कारों, प्रारब्ध एवं संचित कर्मों के साथ जन्म लेते हैं | जन्म के समय आत्मा के साथ उसके पूर्व जन्मों के कर्म भी जुड़ें रहते हैं या दुसरे शब्दों में कहें कि माँ के गर्भ से जन्म लेकर नये शरीर के साथ जन्म के वक्त भी आत्मा क्लीन स्लेट नहीं होती है | आत्मा अपने साथ अपने प्रारब्ध के कर्म और पूर्व जन्मों के संस्कारों के साथ संसार में नये शरीर के साथ जन्म लेती है | विभिन्न आदमीयों के संस्कार/संचित एवं-प्रारब्ध के कर्म भिन्न भिन्न होते हैं, इसलिये जीवन के बारे में उनके विचार, उनकी मनोव्रत्तियां, उनकी भावनायें एवं सोच एक समान कैसे हो सकते हैं ? अनिवार्य रूप से उनके विचार, उनकी मनोव्रत्तियां, उनकी भावनायें एवं सोच अलग अलग ही होगें, इस सच्चाई के बावजूद हम कैसे मान सकते हैं की हमारी संतान हमारी कार्बन कॉपी ही होंगें और वो ही करेगें या कहेगें जैसा हम करते हैं ?
मानव का जीवन अन्य सभी जीव-जंतुओं के जीवन से विपरीत सुन्दरतम, अदभुत इसीलिए ही होता है क्योंकि दुनियाभर में कोई भी दो पुरुष/स्त्री समान नहीं होते हैं, सोच, विचार, प्रव्रत्ति व्यक्त्तिव की विभिन्नता ही मानवीय जीवन को श्रेष्टतम बनाती है | ( According to Pauling Principle “NO TWO ELECTRON CAN BE IDENTICAL IN ALL RESPECTS’ ) हमें विचारों एवं सोच की भिन्नता के अटल सत्य को स्वीकार करना ही होगा | अत: न्याय एवं तर्क संगत तो यही है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने ढगं से उनका जीवन जीने दें, उन्हें अपने लिये निर्णय लेने की आजादी दें | सभी के विचारों/सोच के साथ सामंजस्य रखने, उनका सम्मान करने से जहाँ एक तरफ आपका जीवन तनावमुक्त, सुखी बनेगा,वहीं दूसरी तरफ हमारे पारस्परिक संबंध/ मित्रता मजबूत, सुखदायी एवं स्वस्थ बनेगें | हमारे परिवारों में से शंकाओं और अविश्वास के वातावरण के स्थान पर पारस्परिक विश्वास, स्नेह, प्रेम पनपेगा एवं जीवन सुखमय हो जायेगा |
क्या आप भी अपने बच्चों की उनके मित्रोँ अथवा दूसरे बच्चों से तुलना करते हैं ?
जब आप अपने बच्चे को टोकते है, एवं कहते हैं कि तुम्हारे दोस्त/पड़ोसी के पुत्र/पुत्री को तो परीक्षा में इतने अच्छे मार्क्स मिले हैं, फलां बच्चा खेल कूद, सांस्क्रतिक कार्यक्रमों में भाग भी लेता और इनाम भी जीतता है, तुम्हें हमने सारी सुविधाएँ –साधन सुलभ करा रक्खें हैं, तो फिर तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकते हो ? क्या ऐसा कर आप अपने ही लाडले के मन में हीन् भावना तो पैदा नहीं कर रहें है ? क्या आप उसे जाने अनजाने में नकारात्मक उर्जा/भावना तो नहीं दे रहें हैं ?
जरा सोचिये ,मनन कीजिये, क्यों आपका बच्चा अपनी प्रतिभा के अनुरूप परिणाम नहीं दे पा रहा हैं ? बच्चे के साथ शान्ती एवं खुले दिमाग से बात करें, उसकी परेशानियों को सुने-समझें, उसे रचनात्मक सलाह/सुझाव दे, प्रोत्साहित करें, उसे स्नेह-प्रेम-प्यार दें , उसका आत्मविश्वास बढायें | आप उसके सलाहकार बने, उस पर अपना निर्णय नहीं थोपें और उसे अपने भले-बुरे के लिये खुद निर्णय लेने दें | कुछ समय बाद आप खुद ही देखगें कि आपके बच्चे में सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है, शिक्षा-अध्यन में उसका प्रदर्शन बेहतर से बेहतर हो रहा है, वो आपकी सलाह को गम्भीरता से लेकर अपने जीवन पथ पर सही दिशा में अग्रसर हो रहा है, सफलता के नये आयाम स्थापित कर रहा है और आप भी कहने लगे हैं वो आपका सपूत आपकी ख्याति में चार चाँद लगा रहा है|
अत:अपने बच्चों का जीवन सुखमय ,सफल और खुशहाल बनाने हेतु कभी भी किसी की, किसी दूसरे से तुलना नहीं करें, डाटें-फटकारें नहीं, उसे समझायें, सलाह दें, उसे अपना निर्णय खुद लेने दें , उसकी सोच/ निर्णय का सम्मान करें | आपके मित्र/ बच्चे/ पत्नी/सहकर्मी/पड़ोसी/ स्वजन/अधिकारी जैसे हैं उन्हें उसी रूप में स्वीकार करें Accept them as they are ), इस नीति से आप भी खुश रहेगें और अन्य भी, यहीं से आपके पारस्परिक संबंध मधुर-खुशहाल बनने चालू हो जायेगें, आपका जीवन सही अर्थों में सार्थक, वैभवशाली,सफल बन जायेगा |
डा.जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—–मेरी डायरी के पन्ने, बहन शिवानी एवं अन्य संतों के प्रव्रचन

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