क्या दूसरों के विचारों को बिना समझे नकारना मधुर सम्बन्धों के लिये उचित है ?

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

अगर आप अन्य की बातों, सोच या मनोव्रती को एकदम से रिजेक्ट करते रहगें तो कुछ समय के बाद यह भी संभव है कि वे लोग भी आपकी रिजेक्ट करने की आदत से परेशान होकर, खिन्न हो कर या व्यथित और दुखी होकर आपसे बात ही करना बंद कर देगें अथवा आपसे वें अपने विचारों का साँझा करना ही बंद कर दें, उनके मन में एक न एक दिन आपके लिये आदर की जगह अनादर, रोष और इर्ष्या की भावनायें पनपेगी जिससे आपके अच्छे पारस्परिक संबंध बिगड़ जायगें |क्या आप ऐसा चाहेगें, शायद कभी भी नहीं, तो फिर आपको दूसरों की बातों या विचारों अथवा सोच को रिजेक्ट करने की अपनी आदत को त्यागना ही होगा | निर्णय तो आप को ही करना है |इस बात की जिद्द करना छोड़ दें कि केवल आप ही सही हैं और अन्य गलत | इस बात को स्वीकार करें कि दूसरा भी अपने द्रष्टिकोण के हिसाब से सही हो सकता है,अत: हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए की हम इस मुद्दे पर हमारे आपसी विचारों पर एक राय नहीं रखते हैं यानी “वी शुड बी एग्री टू बी डिसएग्री “ ( We should agree to disagree ) आपकी सोच से आपके विचार सही हैं किन्तु उनकी सोच से उनके विचार भी सही हैं, किन्तु इसके बावजूद भी आप एक दूसरों के विचारों का सम्मान करते हैं |
हमारी नकारात्मक सोच, नकारात्मक प्रवर्ती या नकारात्मक भावनायें हमारे पारस्परिक स्वस्थ, सोहार्दपूर्ण, सम्बन्धों के विकास में सबसे बड़ी बाधा बनते हैं | परस्परिक सम्बंध हमारी आंतरिक मनोभावनाओं पर निर्भर करते हैं इसलिये हमको खुद की नकारात्मक भावनाओं को सकारात्मक भावनाओं में बदलना ही होगा |अगर हम चाहते हैं कि दूसरा व्यक्ति हमारे बारे में अपनी भावना को बदले तो इसके लिये सर्वप्रथम हमे अपने आप में सकारात्मक परिवर्तन कर उसको हमारी तरफ से सकारात्मक भावनाओं की प्रबल तरगें भेजनी होगी |
अपने जीवन को प्रसन्न , शांतीपूर्ण , तनावमुक्त बनाने के लिये जरूरी है कि हम पुरानी अप्रिय या दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को याद नहीं रक्खें और उन्हें भूल जायें | और अगर किसी ने आप के साथ कुछ बुरा भी किया तो उस घटना को भुलाकर उन सज्जन को दिल से माफ़ कर दें (फोरगिव एंड फॉरगेट के नियम को अपनायें ) | अत: जो जेसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लें , हर एक को बिना कोई शर्त के माफ़ कर दें , बीत गया सो बीत गया | जब आप पुरानी अप्रिय बातोँ को भूल जायगें तो बाद में आपको खुद को ही वे अप्रिय घटनायें बहुत हीं छोटी एवं अर्थहीन, महत्त्वहीन लगेगी |जिस प्रकार छोटे-छोटे पोधों को अगर पानी नहीं पिलाया जाये तो कुछ दिनों बाद वे मर जाया करते हैं या नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार अगर हम हमारी जीवन में घटित अप्रिय घटनाओं को तजरीह नहीं दें या उन्हें भूल जायें तो वे हमारे मानस पटल से धीमें धीमें स्वत ही लुप्त हो जायेगी और हमारे जीवन में सफलता- खुशीयों के दरवाजे खोल देगीं |
अपने परिचीतों, मित्रोँ एवं अन्य सभी से निरंतर संवाद करते रहें, संवादहिनता से बचें | निरंतर पारस्परिक वार्तालाप से पारस्परिक गलतफहमियां दूर होगीँ, रिश्तें मजबूत बनेगें एवं आपको अपने झूटे आत्मअभिमान से भी मुक्ती मिलेगी, आप स्वाभीमान और आत्मविश्वास के साथ जीवन का आनन्द ले सकगें |
डा.जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—–मेरी डायरी के पन्ने, बहन शिवानी एवं अन्य संतों के प्रव्रचन

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