हादसों के लिये दूसरों को जिम्मेवार ठहराना सही है ?

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

हम सभी के जीवन में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब हमारे साथ कुछ गलत हो जाता है | हमारे साथ हुई ऐसी घटनाओं के कारण क्षणिक आवेष में आकर अक्सर हम इसके लिए दूसरो पर अंगुली उठाते हैं एवं उन्हें हमारे साथ हुए हादसे के लिए जिम्मेदार भी समझते हैं और क्रोध में खुद लालपीले भी हो जाते हैं | जब कभी आपका मित्र या सहकर्मी अथवा चिरपरिचित एवं सम्बन्धी आप के बारे में कुछ उल्टा-सुलटा बोले या अनुचित बात कहें जो आप को अच्छी नहीं लगे और आपकी खुशी नाखुशी मे बदल जाये जिससे आप को गुस्सा आ जाये तब उस समय आप यह सोचतें हैं की मैंने तो इनके साथ हमेशा अच्छा ही किया है , इनके भलें के बारे में ही सोचा है,फिर भी वें मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहें हैं?इस अवस्था में आप के सामने दो ही रास्ते होते हैं:——–
(1)आप शांत रहें और तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीँ दें|
या (2 )आवेश में आकर आप भी क्रोधित हो जायें और अपना आपा भी खो दें|
दूसरों पर दोषारोपण करने और उन पर क्रोध करना आपके लिये ही नुकसान दायक होगा क्यों की जब आप सामने वाले पर क्रोध करते तो उस वक्त यह नहीं भूलें कि दूसरों पर क्रोधित होने के साथ साथ आप अपने आप पर भी क्रोध कर अपने आप का ही नुकसान कर रहें हैं|हो सकता है संदर्भित घटना के लिये सामनेवाले पक्ष की गलती हो किन्तु आपको यह भी समझना होगा कि एक गलती का जवाब दूसरी गलती से देना न्यायोचित नहीं हो सकता है|
यह भी याद रक्खें जो कुछ भी आपके आसपास हो रहा है उस पर आपका कोई नियन्त्रण नहीं होता है इसलिये हमें बाहरी घटनाओं या परिस्थीती का गुलाम नहीं बनना है अथवा उन पर आश्रित नहीं होना है क्यों कि बाहरी घटनाओं या परिस्थीतीयों का गुलाम बनने या उन पर आश्रित होने से हमे भी क्रोध आयेगा,यह क्रोध हमको खुद को दुर्बल बना कर हमारी आन्तरिक और शारारिक उर्जा का भी विनाश करेगा | जब हम क्रोध करते हैं उस वक्त हमारे शरीर का रोम-रोम उत्तेजित जाता है एवं ह्रदय की गति तेज हो जाती है यहाँ तक हमारा पाचन तन्त्र भी प्रभावित होकर खराब होता है और हम बीमारियों को बुलावा देते हैं | क्या आप ऐसा करना चाहंगे ? आपका खुद का उत्तर होगा कभी नहीं–कभी भी नहीं|
इन्सान वही करता है जो उसका मन कहता है इसलिये हम सभी को अपने मन को शक्तिशाली,प्रबल,उर्जावान बनाना होगा,हमारा मन अति गतिशील एवं चचंल है इसलिये इस पर नियन्त्रण रखना होगा |सवाल उठता है कि मन को नियन्त्रण कैसे रक्खा जाये ?हम अपने मन पर नियन्त्रण सिर्फ ध्यान या मैडिटेशन से ही रख सकते हैं|मन पर नियन्त्रण होने से हम हमारी इच्छाओं,कर्मो,मूड और आकांक्षाओं पर भी नियन्त्रण प्राप्त कर लेगें|मन पर नियन्त्रण नहीं होने से जहाँ हम अपनी मानसिक शांति खो देगें वहीं परेशान और दुखी भी रहेंगे|
क्या क्रोध (ANGER )कभी भी प्राक्रतिक या नेचुरल हो सकता है ?
आप को इस अटल सत्य को स्वीकार करना होगा कि “ जिस पर आप क्रोध कर रहें हैं उसे आप नकारात्मक उर्जा/तरगं भेज रहें हैं|महान वैज्ञानिक न्यूटन के नियम के अनुसार “ हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है यानी every action has equal and opposite reaction “ जिस पर आप क्रोध कर रहें हैं उसे आप नकारात्मक उर्जा/तरगं भेज रहें हैं यही नकारत्मक उर्जा कई गुणा अधिक मात्रा में तीव्रता के साथ आपके पास पलट कर लोटगी जिससे आपके खुद के कर्मों का खाता ( कार्मिक अकाउंट ) भी नकारात्मक (नेगेटिव) बनता जायेगा,आपका मन एवं दिमाग अशांत,अस्थिर,अनियंत्रित और परेशान रहेगा,ऐसी मानसिक अवस्था से आपको खुद को भी ज्यादा तकलीफों का सामना करना पड़ेगा,आप शारारिक रूप से भी अस्वस्थ हो जायगें,आपको कई बीमारीयां भी हो सकती है |
अत: हम निसंदेह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जिस प्रकार तनाव एवं बीमारीयां प्राक्रतिक या नेचुरल नहीं हो सकती है उसी तरह क्रोध (ANGER )कभी भी प्राक्रतिक या नेचुरल नहीं हो सकता है|
डा. जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—–विकीपीडिया, हिन्दी नेस्ट.कॉम,मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न संतों सिस्टर शिवानी एवं अन्य महापुरूषों के प्रव्रचन आदि आदि

error: Content is protected !!