उम्र का ये सफर वो सफर भी कटता रहा

मीनाक्षी 'नाज'
मीनाक्षी ‘नाज’
उम्र का ये सफर वो सफर भी कटता रहा
मुझको बांट कर ये डगर मुझसे मिटता रहा

मैं बरखा बनूं या बादल बनूं ये मुझपे न था
कोई झरना मुझसे कैसे कोई फिर फूटता रहा

ना मैं जमीं ही थी ना कोई आसमान ही थी
हर ऊंचाई मुझे होते हुए झुकता रहा

ख्वाब तो कई थे सजे सजाये इन आंखों में भी
मगर न जाने किसकी नजर लगी वो बिखरा रहा

जिन शाखों में खिले थे फूल मोहब्बत के
देख ऐ ‘नाज’ आज एक एक करके वो टूटता रहा

मीनाक्षी ‘नाज’

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