शशि पाधा की हिंदी रचना का देवी नागरानी द्वारा सिंधी अनुवाद

मूल लेखिका: शशि पाधा
Shashi Padha (2)जाने क्यों
जाने क्यों आज फिर से
भीग गया मन का आकाश !
कोई बदली बरसी होगी
धीमे-धीमे, चुपके-चुपके
कहीं तो बिजुरी सिसकी होगी
अँधियारों में छुपके-छुपके
जाने क्यों आज किसी का
टूट गया संचित विश्वास !
किरणों की डोरी से बाँधी
किसने भेजी होगी पीर
किस की आहें पल भर उमड़ीं
बन कर बरसीं होंगी नीर
जाने क्यों रोम-रोम से
आज उठते हैं निश्वास !
धुँधली सी कोई याद पुरानी
अँखियों में घिर आई होगी
बीते कल की साध अधूरी
फिर से जीने आई होगी
जाने क्यों आज अधर पे
मुखरित है सूना सा हास !
संपर्क: पता : 10804, सनसेट हिल्स रोड, रेस्टन, वर्जिनिया, 20190, US

सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
Devi N 1अलाजे छो ?
अलाजे छो अञु वरी
घिमियल आहे मन जो आकाश !
का ककड़ी वसी हून्दी
आहिस्ते-आहिस्ते, माठ-माठ में
किथे बिजली सुडुकी हून्दी
ऊंदहि में लिकी-लिकी
अलाजे छो अजु कहिंजो
टूटो आहे समूरो विश्वास !
किरणन जी डोर सां बधी
कंहि मोकली हूंदी पीढ़ा
कंहि जूं आहूँ पल में उमड़ी
वसियूँ हूंद्यूं बणजी नीरू
न जाणु छो रोम-रोम माँ
अजु उथन था सूकरा!
धुँधली का याद पुरानी
अँखियुन में घिरी आई हून्दी
गुजिरियल कल जी चाह अधूरी
वरी जीअण आई हून्दी
न जाण छो अजु चपन ते
मुखरित आहे सुञो हास !
480 वेस्ट सर्फ स्ट्रीट, एल्महर्स्ट, IL-60126

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