बॉक्स ऑफीस पर कमाई के सारे रेकॉर्ड बाहुबली ने तोड़ दिये. उसके बाद आये बजरंगी भाईजान भी बाहुबली को हिला नहीं पाये . इससे उन लोगों को बड़ी राहत मिली है जिन्हें खान स्टारों से एलर्जी है . वह भी सिर्फ इसलिये कि वे खान हैं , कोई कपूर या कुमार नहीं . ऐसे लोग बाहुबली की सफलता को भारतीय संस्कृति की जीत प्रचारित कर रहे हैं . हैरत की बात है कि कला व सिनेमा को भी संकीर्ण नजरिए से देखा जा रहा है . सच तो ये है कि सिनेमा किसी भी देश का हो , धर्म निरपेक्षता उसकी खासियत ही नहीं बल्कि मजबूरी भी है . बॉलीवुड भी इसका अपवाद नहीं है . आरक्षण इस देश का नासूर बन चुका है मगर क्या किसी नेता या दल में हिम्मत है कि आरक्षण के खिलाफ बोल सके ? बाहुबली अगर बजरंगी भाईजान पर भारी है तो इसलिए कि बाहुबली जैसी फिल्में रोज रोज नहीं बनती हैं . इतना बड़ा बजट , इतने रोमांचक युध्द दृश्य , इतिहास और पुराण को मिक्स कर रची गयी स्क्रिप्ट क्या रोज रोज सम्भव है ? लिहाजा एक बेहतरीन फिल्म को सराहें मगर गलत मकसद से नहीं .
Teerth Gorani