मूल लेखिका: तारा सिंह
बैठो न अभी पास मेरे
थोड़ी दूर ही रहो खड़े
मेरा प्रियतम आया है
दूर देश से बावन साल बाद
कैसे कह दूँ कि अभी धीर धरो
शशि – सा सुंदर रूप है उसका
निर्मल शीतल है उसकी छाया
झंझा पथ पर चलता है वह्
स्वर्ग का है सम्राट कहलाता
मेरी अन्तर्भूमि को उर्वर करने वाला
वही तो है मेरे प्राणों का रखवाला
जब इन्तजार था आने का
तब तो प्रिय आए नहीं
अवांछित, उपेक्षित रहती थी खड़ी
आज बिना बुलाए आए हैं वो
कैसे कह दूँ कि हुजूर अभी नहीं
दीप शिखा सी जलती थी चेतन
इस मिट्टी के तन दीपक से ऊपर उठकर
लहराता था तुषार अग्नि बनकर
भेजा करती थी उसको प्रीति,मौन निमंत्रण लिखकर
आज कैसे कहूँ कि वह प्रेमी-मन अब नहीं रहा
जिससे मिलने के लिए ललकता रहता था मन
वह आकर्षण अब दिल में नहीं रहा
संपर्क: सम्पादक, स्वर्गविभा, नवी मुम्बई
सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
वेह न हाणे भर में मुहिंजे
थोड़ो परे ई बीठो रहु
मुहिंजो प्रीतम आयो आहे
परे देश खां, बावंझा साल पोइ
कींअ चवां त हाणे धीरज रख
चण्ड वांगुर मोहीन्दर रूप आ उनजो
निरमल थधी आहे उनजी छांव
मींहं –तूफ़ानी रस्ते ते हले थो हू
सुरग जो आहे शहनशाह चवांईंदो
मुहंजी अन्तर-ज़मीं खे खाद डियणं वारो
ऊहो ई त आहे मुहंजे प्राणन जो संभालीदर
जडंहिं इन्तज़ार हुओ अचण जो
तडंह त प्यारो आयो कीन
नवणंद , निधकिणी थी बिहंदी हुअस
अञउ बिना पुकार आयो आहे हू
कींअ चवां त हज़ूर हाणे न
दीपकन जी प्रेमिका वागुर बरंदो हुयो हींओ
हिन मिट्टीअ जे तन डीए खां मथां उथीकरे
लहराए थी ओस बि अग्नि बणजी करे
मोकलींदी हुयस हुन्खे प्रीत, माठ न्यौतो लिखी करे
अञउ कींअ चवां त हाणे उहो प्रेमी-मन न रह्यो
जहंसां मिलण लाइ छिकिजन्दो रहन्दो हो मन
ऊहो मोह हाणे दिल में न रहयो॥
संपर्क: 480 वेस्ट सर्फ स्ट्रीट, एल्महर्स्ट, IL-60126