कही युधिष्ठर का रथ जमीन पर न आ जाय ?

शिव शंकर गोयल
शिव शंकर गोयल
कुछ समय पूर्व जब रामानन्द सागर के रामायण सीरियल के पात्र रावण-श्रीअरविंद त्रिवेदी एवं सीता-श्रीमतिदीपिका चिकलिया, दोनों ही एक तरफ यानि बीजेपी में षामिल होगए तो बडा षोर मचा था. लोगों ने नैतिकता का सवाल उठाते हुए कहा कि रावण और सीता एक तरफ कैसे हो सकते है तोे उस दल का जवाब था कि नैतिकता का तकाजा हम पर लागू नही होता क्योंकि हमारी तो ‘पार्टी विद ए डिफरेन्स’ अर्थात अनोखी पार्टी हैं और यह बात हाल ही में उजागर हुए ‘ललित मोदी गेट’, मध्यप्रदेष का ‘व्यापम’ घोटाला आदि कांड में सिद्व भी होगई.
उन्ही दिनों की बात है जब लक्षमण ने उपरोक्त वाकया सुना तो वह काफी खिन्न हुए. उनका कहना था कि मैंने नाहक ही 14 वर्षों तक उर्मिला का विरह सहा. कहते है कि इसी वजह से वह इन्द्रजीत उर्फ मेघनाथ को मारने में सफल हुए थे. लंका कांड में जिक्र है कि जब मेघनाथ की भुजा कटकर महल में गिरती है तो उसकी पत्नि सुलोचना कहती है ‘नींद, नारी, भोजन जो तजही, ता नर से मो पति मरहि’ परन्तु अब तो कलियुग है. भागवत में राजा परीक्षित को षुकदेवजी ने पहले ही बता दिया था कि राजन ! कलियुग में सब कुछ सम्भव है. अच्छे दिनों की आड में जो न होजाय वह कम है.
हालांकि यह भी सच है कि बाद में उसी रामायण के पात्र हनुमान-दारासिंह भी रावण और सीता के साथ जा मिले. उनका कहना था कि राम-अरूण गोविल ने भी तो कांग्रेस के चुनाव प्रचार में उतरकर आचार संहिता तोडी थी अब हम ऐसा कर रहे है तो क्या गलत है और वैसे भी त्रेतायुग के कायदें कानून कलियुग के आते आते बदल गयेे हैं.
फिर एक समय वह भी आया जब बीआर चौपडा के महाभारत सीरियल के पात्र कृष्ण-नितिष भारद्वाज भी उसी दल में मिल गए. तब यह भी अनुमान लगने लगा था कि अब अर्जुन वगैरह भी इधर आ मिलेंगे लेकिन न अर्जुन-भीम आए न द्रौपदी. हां अब कही जाकर वह दल युधिष्ठर-गजेन्द्र चौहान को अपने में मिलाने में सफल हुआ हैं बदले में उसने उसे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान का प्रमुख बनाते हुए नायाब तोहफा दिया हैं परन्तु न केवल संस्थान के विद्यार्थी बल्कि इस क्षेत्र के बडें बडें महारथी भी उनका विरोध कर रहे हैे.

कुछ विद्वानों के अनुसार नैतिकता का तकाजा तो यह है कि युधिष्ठर की सत्यनिष्ठता संदेह से परे होनी चाहिए. महाभारत के द्रौणपर्व में द्रौणाचार्य ने युद्वभूमि में कहा था कि मैं तो युधिष्ठर के सार्टिफिकेट को ही ‘वेलिड’ मानता हूं. जब तक युधिष्ठर ने ‘अष्वत्थामा हतः नरो वा कुंजरो’ नही कह दिया तब तक द्रौणाचार्य ने हथियार नही डाले हालांकि इस वजह से धरती से चार अंगुल उॅचा चलनेवाला उनका रथ जमीनपर आगया था.
युधिष्ठर को सब धर्मराज कहते थे. वह जब मृत्युलोक छोडकर अपने धर्मरूपी ष्वान सहित स्वर्ग में जाने लगे तो उन्हें रोका गया लेकिन वह अड गए कि यह डॉगी तो मेरे साथ ही स्वर्ग जायगा लेकिन वह द्वापरकाल था अब कलियुग है. अब अडने से बात नही बनेगी अतः उनको चाहिए कि इस्तीफा देदे. कही ऐसा न हो कि उनका रथ भी जमीन पर आजाय.

ई. शिव शंकर गोयल

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