27 जुलाई… शाम का वक्त… एडिटोरियल कक्ष में सभी काम में व्यस्त थे। न्यूज चैनल चल रहा था। गुरदासपुर के दीनानगर में आतंकी हमले को लेकर चर्चा थी और इस पर तैयार हो रहे समाचार और विशेष पन्नों का भी इंतजार हो रहा था। एकाएक समाचार आए कि पूर्व महामहिम, मिसाइलमैन कलाम साहब नहीं रहे। अखबार का दफ्तर था…थोड़ी देर में ही लाेगों के फोन आने शुरू हो गए कि कल छुट्टी है क्या? देर रात तक मोबाइल और ऑफिस के लैंडलाइन नंबर पर यही सवाल था। जहां लाेग अपने दूसरे दिन छुट्टी और इसे किस तरह बिताया जाए, इसकी प्लानिंग में जुट गए थे, वहीं अखबारों के दफ्तर में एक अलग माहौल था। जहां दीनानगर की घटना पर पूरा दिन काम चल रहा था, वहीं अब एपीजे अब्दुल कलाम को लेकर भाग-दौड़ और दिमागी कसरत शुरू हो गई थी। जहां आधा देश कलाम साहब नहीं, अपने अवकाश के बारे में सोच रहा था, वहां एकमात्र पत्रकार वर्ग ही ऐसा रहा होगा, जो किताबों, इंटरनेट, पुराने अखबारों सहित हर किसी जरिए से कलाम साहब से जुड़़ी सामग्री जुटाने में लगा था। उसे बस उस एक दिन की ही फिक्र नहीं थी, वह अगले दिन को लेकर भी पूरी तरह प्लानिंग में जुट गया था। जहां पूरा देश सो रहा था, वहीं एकमात्र पत्रकार वर्ग ऐसा था, जो रातभर सो भी नहीं पाया होगा… अभी भी वह यही काम कर रहा होगा कि कलाम साहब से जुड़ी यादों को किस प्रकार बेहतर बनाकर अपने पाठकों तक पहुंचाया जाए…। शायद पत्रकारों की ओर से उन्हें यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी….।
Arvind apoorva