वसीयत सामने थी
उसपर सिर्फ़ और सिर्फ़
हस्ताक्षर करने थे!
वह जानती थी…. सब कुछ जानती थी
क्या हो रहा है?
क्यों हो रहा है ?
उसके मरने का इंतज़ार
हाँ, उसीका इंतज़ार था
पर,
उसके पहले ज़रूरी था
इन कोरे कागजों पर
लिखे काले अक्षरों के तले
हस्ताक्षर करना!
उसके सामने रखी वसीयत में
सभी ने अपनी चाहतों को
अपनी अपनी जरूरतों को दर्ज किया था
बस भूल गए वो मेरी चाहत
ज़रूरत तो बहुत दूर की बात थी…!
मैंने भी, लिखकर दो शब्द
हस्ताक्षर कर दिये
यही लिखा था —
“आज तुम हाक़िम हो
कल तुम्हारे वंशज हुकूमत करेंगे,
यहाँ, इसी जगह
बिना तुम्हारी ज़रूरत जाने,
वे तुम्हारे हस्ताक्षर खुद ही कर लेंगे, तुम्हारी उनको ज़रूरत नहीं रहेगी।
यही इतिहास की सच्चाई है !
देवी नागरानी