संसद क्यों ठप हैं ?

sohanpal singh
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2011 में केंद्र सरकार ने संसद को अवगत कराया था कि संसद की कार्यवाही में प्रत्येक मिनट पर 250000 (दो लाख पचास हजार रूपए ) खर्च होते है यानि एक घंटे के 15000000 ( एक करोड़ पचास लाख रुपये ) अर्थात पुरे दिन का खर्च 9 करोड़ रुपये ! और ये रुपया किसी सांसद की जेब से नहीं आता अपितु इस खर्च का बहुत बड़ा हिस्सा सांसदों की जेब में ही जाता है ! ( तनख्वाह और भत्तों के रूप )

यह सब पैसा देश की जनता से टैक्स रूपी खून चूस कर वसूला जाता है और ये लोक तंत्र के रखवाले इसे बेदर्दी से बर्बाद कर रहे हैं ! हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कौन सहयोग कर रहा है और कौन सहयोग नहीं कर रहा है , इस बात की जिम्मेदारी केवल सरकार की है ! क्योंकि जनता ने जिस पार्टी को बहुमत दिया है अपेक्षा भी उसी है और उसी सरकार का दायित्व भी है की सरकार कैसे चलानी है ?

बहुत आश्चर्य होता है जब प्रधान मंत्री के सहयोगी मंत्री और उनकी पार्टी के सांसद विपक्षी पार्टियों के बारे में अनर्गल टिपण्णी करते है और प्रधान मंत्री विपक्ष से सहयोग मांगते है लेकिन अपने सहयोगियों पर कोई लगाम नहीं लगते आखिर क्यों ? यह विरोधाभास क्यों है ? शासक पार्टी का पूर्वाग्रह की देश को कांग्रेस मुक्त। बनाना है एक अव्यवहारिक सोच है लोक तंत्र में कोई अंतिम लक्ष्य हो ही नहीं सकता क्यों किसी को चुनना या न चुनना जनता पर निर्भर होता है ! क्योंकि बीजेपी को केवल 31 प्रतिशत लोगो का समर्थन ही है? जो आगे बढ़ भी सकता है और कम भी हो सकता है ? परंतु 69 प्रतिशत लोग उससे नफरत भी करते हैं यह याद रखना चाहिए ? लेकिन इस लोक तंत्र का सबसे बड़ा मजाक तो यह है कि प्रधान मंत्री भी संसद में मौन रहकर अपने सहयोगियों को मूक समर्थन देते है परंतु अपनी भड़ास संसद के बाहर निकलते है या विदेश में मुखर होते हैं ! देश और संसद जाय भाड़ में ?

और यह बात विपक्षी कांग्रेस को भी समझनी चाहिए की अगर बीजेपी विपक्ष के रूप में कांग्रेस का सम्मान नहीं करना चाहती तो उसे अपने आप को इतना सक्षम करना चाहिए की सरकार को अकाल आ जाय ? अन्यथा संसद के गतिरोध को ख़त्म करे या छुट्टी लेकर घर बैठे ! या संसद से त्याग पत्र देवें ! क्योंकि देशहित सर्वोपरि होना चाहिए ! उदाहरण हमारे सामने है की लोकसभा में श्री नरेंद्र मोदी को सर आँखों पर बैठाने वाली जनता जब 6 माह के अंदर ही दिल्ली से बीजेपी का सूपड़ा साफ़ कर देती है और फिर बिहार में उनको धुल चटा देती है ?

एस पी सिंह, मेरठ ।

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