संगत का असर

दौलत खेमानी
दौलत खेमानी
एक अजनबी मुसाफ़िर किसी गाँव में पहुँचा। गाँव में दाखिल होते ही उसे कुछ लोग मिल गए। एक बुज़ुर्ग को संबोधित करते हुए उसने पूछा, ”इस गाँव के लोग कैसे हैं ? क्या वे अच्छे और मददगार हैं ?” बुज़ुर्ग ने अजनबी के सवाल का सीधे जवाब नहीं दिया, उलटे एक सवाल कर दिया, ”मेरे भाई! तुम जहाँ से आए हो वहाँ के लोग कैसे हैं ? क्या वे अच्छे और मददगार हैं ?

वह अजनबी अत्यंत रुष्ट और दुःखी होकर बोला, ”मैं क्या बताऊँ ? मुझे तो बताते हुए भी दुःख होता है कि मेरे गाँव के लोग अत्यंत दुष्ट हैं। इसलिए मैं वह गाँव छोड़कर आया हूँ। लेकिन आप यह सब पूछकर मेरा मन क्यों दुखा रहे हैं ?”

बुज़ुर्ग बोला, ”मैं भी बहुत दुःखी हूँ। इस गाँव के लोग भी वैसे ही हैं। तुम उन्हें उनसे भी बुरा पाओगे।” तभी एक राहगीर आ गया। उसने भी उस बुज़ुर्ग से यही सवाल किया, ”इस गाँव के लोग कैसे हैं ?”

बुज़ुर्ग ने भी पूर्ववत् उलटा सवाल दाग दिया, ”पहले तुम बताओ जहाँ से तुम आये हो, वहाँ के लोग कैसे हैं ? राहगीर यह सुनकर मुस्करा दिया। उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई। उसने कहा कि मेरे गाँव के लोग इतने अच्छे हैं कि उनकी स्मृति मात्र से सुख की अनुभूति होती है। वह गाँव छोड़ते हुए मुझे दुःख है, लेकिन रोज़गार की तलाश यहाँ तक मुझे ले आई है। इसलिए पूछ रहा हूँ कि यह गाँव कैसा है ? बुज़ुर्ग बोला की दोस्त ! यह गाँव भी वैसा ही है। यहाँ के लोग भी उतने ही अच्छे हैं। वास्तव में इनसानों में भेद नहीं होता। जिनके सम्पर्क में हम आते हैं, वे हमारी ही तरह हो जाते हैं-अच्छे के लिए अच्छे और बुरे के लिए बुरे।

-दौलत खेमानी

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