आज २४ व कल २५ दिसम्बर को ज.ला.ने. मेडिकल कॉलेज, अजमेर की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है. जिसका हमें बेसब्री से इंतज़ार था. आज पुराने सहपाठी ही नहीं बल्कि १९६५ से लेकर अब तक के हमारे सभी गुरुज़न भी आमंत्रित थे.
प्रातः काल पंजीयन के वक्त से ही पुराने साथियों से मिलना, किसी को पहचान लेने की खुशी, तो किसी को पहचानने की कोशिश में दिमाग पर जोर डाल कर कहना, कि अरे तू महेश !! इतना बदल गया? तो कोई वैसा ही लग रहा था/ रही थी जैसा १९७२ में. बड़ा ही रोमांचक और ऊर्जा से ओत प्रोत करने वाला माहौल रहा.
कई साथी स्वस्थ्य व अन्य पारिवारिक कारण से नहीं पहुँच पाए उनकी अनुपस्थिति भी खली.
जब पुराने गुरुओं डॉ झाला, डॉ. टी सी जैन, डॉ, श्री गोपाल काबरा, डॉ मन्नो जैन, डॉ शारदा, डॉ पीके शर्मा, डॉ रमेश क्षेत्रपाल, आदि को सम्मानित कर रहे थे तो लगा हमारा लडक पन लौट आया और मेडीकल कॉलेज के वो दिन याद आने लगे जब हम एक बकरी के मेमने सरीखे उन शेर रुपी टीचर्स के सामने उस गुफा की भांति लगने वाले कॉलेज परिसर में डॉक्टर की दीक्षा लेने दाखिल हुए थे. पर आज उन्ही टीचर्स को हम श्रेय दे रहे थे, उनके प्रति कृतज्ञ थे की जिनकी डांट व सख्ती ने वो मार्ग प्रशस्त किया कि हम एक निपुण व अनुभवी चिकित्सक बनकर उनका व ज.ला.ने. चिकित्सा संस्थान का नाम रोशन कर सकें.
डॉ. पुतुल बेनर्जी मैडम जिन्होंने प्रथम वर्ष में एनाटोमी पढाई उन्हें जब मैंने व डॉ. शशि मित्तल ने मंच से उतरते देखा तो अनायास ही मंच की सीडियों पर उन्हें नमन करने जा खड़े हुए. उतरते हुए उन्होंने मेरा व शशि का हाथ का सहारा लेकर कहा अरे ! अशोक मित्तल और शशि – तुम! तो जहन में एक ममता मई लहर दौड गयी.
गुरु अपने शिष्यों में कितनी जान फूकता है और जब वे ही शिष्य उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरते है, तरक्की करते हैं, तो वे अपना जीवन धन्य मानते हैं.
ये बातें हमें उस वक्त महसूस नहीं हुई जब हम छात्र थे.. तब तो हम उनकी बुराई करते, जो ज्यादा डांटते उनके ऊपर काफी मन ही मन क्रोधित रहते. लगता था उत्तीर्ण कैसे होंगे, डॉक्टर बन पायेंगे की नहीं? लेकिन धीरे धीरे वो किताबें, सब स्टेज, सेमेस्टर, साथियों का साथ और गुरु शिष्यों का रिश्ता प्रगाड़ होता गया, और अंत में डॉक्टर की डिग्री हासिल हुई. आज हर एक ने इन भावनाओं को महसूस किया और इन बातों की चर्चाएँ होती रहीं.
उन गुरुओं व उन साथियों को भी याद करके मन दुखी हुआ जो हमें छोड़कर दूसरी दुनिया में चले गए.
डॉ अशोक मित्तल