निर्भया…….. ?

’’दे तो रहे हो तलाक मुझे जबरो कहर के साथ,
मेरा हुस्न भी लौटा दो मेरे महर के साथ।।’’

rapeआज महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में दिन ब दिन बढ़ोतरी हो रही है। जितने ज्यादा कानून बनाये जा रहे है उतने ही महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ रहे है। 2005 में महिलाओं की सुरक्षा के लिये बनाया गया कानून घरेलू हिंसा अधिनियम, जगह-जगह महिला सुरक्षा हैल्पलाइन, महिला आयोग, महिला पुलिसकर्मी इतना सब कुछ होते हुए भी आज ना तो चारदीवारी और ना ही घर से बाहर महिलाएं कहीं भी सुरक्षित क्यों नहंी है? इसका सबसे बड़ा कारण है हमारी लचर और देरपरक कानूनी प्रक्रिया। इन्सान को इन्साफ मिलते – मिलते वो पूरा टूट जाता है मगर इन्साफ नहीं मिलता है। कानूून इस देश में बहुत सस्ता हो गया है। हमारी पूरी कानूनी प्रक्रिया को जैसे दीमक लग गई है। तारीख पर तारीख मगर इन्साफ नहीं अपने प्रभाव और पैसे से कानून को खरीदा और बेचा जा रहा है। पूरी व्यवस्था में एक सुधार की आवश्यकता है। इस सबसे कतअ नजर।

आज फिर तीन साल बाद जख्म हरे हो रहे है। ’’निर्भया काण्ड’’ उस वक्त एहसास शल हो गये थे पूरे जिस्म में एक सनसनी फैल जाती है जब भी निर्भया जैसे केस सामने आते है, हमारा समाज क्या स्त्रियो के प्रति बिल्कुल संवेदनाहीन हो गया है, है क्या शून्य में भी कुछ नहीं बचा, मेरी ही परिचित है कॉलेज में लैक्चरर है जब निर्भया के प्रति उनके यह वाक्य मुझे याद आते है तो दिल कट जाता है। ’’ऐसी आवारा लड़कियों का यही होता है’’।

माना, मैंने दीदी निर्भया रात में अपने दोस्त के साथ फिल्म देखकर आ रही थी तो उसके साथ यह हुआ किन्तु आप अपने घर से, दूर दूसरे शहर में नौकरी करती है आपको भी रात का सफर करना पड़ता है। कभी अचानक माता पिता की तबीयत खराब होती है रात में भी निकलना पड़ता है तो क्या अगर खुदा ना खास्ता आपके साथ ऐसा हो जाये? सवाल यह नहीं रहेगा तब के कौन फिल्म देखकर आ रहा था? कौन घर जा रहा था? सवाल यह है ’’रात सन्नाटा, एक स्त्री पुरूष की लोभी नजर, संवेदनाहीन समाज और लचर कानून व्यवस्था।’’ रात में स्त्री को जरूरत से भी बाहर निकलना पड़े तो वो क्या करें। घर अगर कोई पुरूष न हो तो मां मर रही हो तो वो क्या करे मरने दे? या अपनी लाचारी पर आसू बहायें, किस पर भरोसा करें, किस पर नहीं। ’’स्त्रियों पर कटाक्ष करते हुए बलात्कारियों के पक्ष में यह भी कहा जाता है कि स्त्रियाँ आधे वस्त्र पहन कर उनकी भावनाओं को उत्तेजित करती है’’ यह भी गलत है, क्योंकि जो स्त्री पूरे वस्त्र पहनती है उसे भी उन ही लालची नजरों का सामना करना पड़ता है। मैं स्वंय का उदाहरण प्रस्तुत कर सकती हूं मैं हिजाब में रहती हूं सिर्फ दो आंखों के कुछ नजर नहीं आता उस हाल में भी कुछ निगाहें इतनी पैनी होती है कि कुछ क्षण को लगता है कि कहीं हम ’’नग्न’ अवस्था में तो नहीं है।

’’मेरी बच्ची चमेली ना सजाया कर तू बालों में,
इसी खुशबू की खातिर फिरते है सांप गलियों में।श्

तो क्या स्त्री सजना संवरना बन्द कर दे? मगर यह समस्या का हल नहीं है। हमारी बेटियां कब तक घुट घुट कर जियेगी? कब तक कोख में ही मरती रहेगी? उन्हंे खुलकर जीने का अधिकार कब मिलेगा? निर्भया जैसी हजारों बेटियों को इन्साफ कब मिलेगा? कब तक बार-बार रोज हजार बार इनका बलात्कार होता रहेगा आखिर क्यों? क्या हम इन सब सवालों का जवाब दे सकते है नहीं? हमें एक जिम्मेदार नागरिक होते हुए सिर्फ आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। हालात से बेखबर बने रहना ही समस्या है जाग्रत रहे सजग रहे संवेदनाहीन ना बने अपने कर्त्तव्यों को समझे और ऐसी घटनाओं के प्रति चुप ना रहें। कानून कुछ नहीं करता तो हमें एकजुट होकर कुछ करना और करवाना होगा।

Dr. Fargana
Reasearch Associate
Deptt. Of Urdu & Persian
University of Rajsthan, Jaipur
E-mail : [email protected]

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