ये कैसी होली……..

सुमित कलसी
सुमित कलसी
रंगो का त्यौहार है होली, भाईचारे के पहचान है होली, दोस्तों और परिवार के साथ रंगो का त्यौहार है होली, और सब से बड़ी बात मेरा मनपसंद त्यौहार है होली.

जिस वक़्त से होश सम्भाला तब से मेरी होली 2 दिन की होती थी एक जिस दिन जलती थी यानि की “होली” और दूसरे दिन “धुलण्डी” जब होली खत्म होती थी.

सब दोस्तों से मिलना उन्हें बधाई देने में ही पूरा दिन कहा निकल जाता था पता ही नहीं लगता था, जो रह जाते थे उनका फ़ोन दिन मे या शाम को आता था और उन्हें फ़ोन पर ही बधाई दे दी जाती थी, और अगली बार सबसे पहले उनके पास से होली के शुरुआत के कसम खाई जाती थी. पर किसी ना किसी तरह हर किसी को मना लिया जाता था.

कोई खुश होता था कोई रूठता था पर सबको मना कर चलने की एक आदत हो गई थी, या हु कहे की बिना बात के सबसे माफ़ी मांगने की आदत हो गई थी, क्युकी जैसे भी हो हर किसी को खुश रखने की आदत हो गई थी मुझे, पर शायद इस बार मे वो सब नहीं कर पाया………………….

“कही रंग आधे अधूरे थे, कही दुआओ में खलल था, मुझसे जो मिलने आये थे,
शायद उनकी किस्मत में ही कोई रंग नहीं था.”

हर बार की होली अच्छी, खुशगवार और मस्ती भरी होती थी, कही दिल के किसी कोने में होली के फिर से आने की चाहत होती थी. हर महीने आ जाये ये होली दिल के किसी कोने में एक ख्वाइश होती थी. पर इस बार ……………………………

आज 24 अप्रैल 2016, जहां मेरी होली 23 अप्रैल 2016 को शुरू हो जानी चाहिए थी वही मै सुमित कलसी अपने काम में और किसी कंपनी की अव्यवस्था के कारण इतना दबाव में था कि जब मेरी अपनी बेटी मुझे शगुन का रंग लगने आई तो मैंने उसे भी मना कर दिया, उसने मुझसे कहाँ भी “पापा मैंने ये रंग दादू की फोटो पर भी लगाया है, प्लीज लगवा लो” पर मेरे कारण 5-6 कर्मचारी प्रेशर में थे की अगर आज काम नहीं हुआ तो बॉस वो सब कल क्या मुंह दिखाएंगे, ये बाते मेरे दिमाग मे घूम रही थी

तड़के सुबह मुझे 8:00 बजे मुझे सम्बंधित विभाग से एक अफसर का फ़ोन आया और उन्होंने मुझसे कहा की “आपकी वजह से हुम्हे आज भी ऑफिस आना पड़ा” ये सुनते ही मेरा वक़्त कुछ सेकंड के लिए रुक सा गया, दिमाग मै एक ही ख्याल…(ये क्या मेरी वजह से किसी का त्यौहार बिगड़ेगा ये मै नहीं होने दुगा)” जैसे तैसे मैंने उन्हें समझजा कि मै सब देख लूंगा आप और बाकी सब भी घर जाए और होली मानए. उस फोन के बाद मैंने अपने त्यौहार का त्याग करके कसम खाई, कि जब तक इस समस्या को सुलझा नहीं लुगा होली नहीं खेलुगा………………. और यही बात अपनी बेटी से कही– “अभी नहीं गुड़िया पर जल्द ही”…………………

हर आधे घंटे बाद क्लाइंट का फ़ोन और मुझे कंपनी द्वारा कोई भी जवाब नहीं मिलने के कारण मै बहूत व्याकुल था जो मै घर मै किसी को बता नहीं सकता था. अंदर ही अंदर मै मर रहा था पर कोई उसे देख नहीं पा रहा था, या यु कहे की मै दिखना नहीं चाहता था, दिल भरा हुआ था और आँखो को तलाश थी की किस आँख से इस दर्द को आँसुओ को बहार निकालू, पर मे अटल था क्युकी मुझे मेरे पापा की एक बात याद आई की “बेटा पैसे के पीछे मत भागना, जब भी कमाओ आदमी कमाओ पैसा अपने आप आ जाएगा, क्युकी बुरे वक़्त मै पैसा काम आये या नहीं पर कमाया हुआ आदमी हर वक़्त आपके साथ होता है”

शायद मेरा वाहेगुरु ये ही चाहता था कि इस बार मै होली ना खेलु, और मुझे कोई रंग ना दे?????? अगर ऐसा ही वाहेगुरु ने मेरे लिए निशित किया था तो वाहेगुरु मै आपसे माफ़ी चाहुँगा कि बच्चों की जींद की वजह से मुझे रंग खरीदने जाना पड़ा और उसी बीच मेरे हाथ पर कुछ रंग लग गया, इसकेलिए जो भी सज़ा आपकी तरफ से होगी मै उसके लिए तैयार हुँ, पर सजा मुझे देना मेरे परिवार को नहीं………………

जब लैपटॉप पर काम कर रहा था तब होली के मनोरंजन की आवाज़े मेरे कानो मै भी आई, ढोल-धमके, डीजे पर बजने वाले गाने, आज के आनंद की जय और बहूत कुछ,……………… मेरी भी इच्छा हुई की चलो होली खेलते है पर……………… शायद मेरे वाहेगुरु को कुछ और ही मंज़ूर था.

करीब शाम के 3:15 बजे मेरा काम पूरा हुआ, तब तक सब होली मना चुके थे, मेरे पास रंग तो थे पर कोई खेलने को राज़ी नहीं था, जिनके फ़ोन आये थे उन्हें या तो मैंने मना कर दिया था या बड़े से माफ़ी मांग ली थी……………………. अब किस मुंह से बुलाऊ उनको?

मेरे जीवन मै ये एक यादगार होली थी और वाहेगुरु से आशा करता हुँ कि फिर मेरे जीवन मै ऐसी होली ना आये, और सभी मित्रगणों, परिवारवालों से क्षमा चाहता हुँ कि इस बार मै आपके साथ होली के पावन पर्व पर शामिल नहीं हो सका.

और अंत मै मेरी जीवन संगनी से माफ़ी चाहुँगा कि ना तो उसके साथ होली खेली और ना ही त्यौहार पर उसे और परिवार को समय दे पाया. पर इतना वादा ज़रूर करता हुँ कि एक दिन ज़रूर आएगा जब आप सबको मुझ पर नाज़ होगा, और मै आपकी हर कसौटी पर खरा उतरुंगा.

क्षमाप्राथी
सुमित कलसी

error: Content is protected !!