*आनासागर की बर्बादी के जिम्मेदारों कुछ तो शर्म करो*

-जिस तरह की नीति अपनाई जा रही है, उससे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है
-रोजाना जलकुंभी निकालने के बावजूद काबू में नहीं आ रही है
-करोड़ों रूपए के वारे-न्यारे करने के अलावा कुछ भी नहीं हो रहा है
-अपने आपको बड़े अफसर कहलाने वालों की मति मार गई है
-शहर में अनेक पर्यावरणविद, जानकार, लेकिन उनसे मशविरा करने में आती है अफसरों को शर्म

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉अब क्या कहें साहब, अजमेर के भाग्य तो पहले भी फूटे हुए थे और अब भी फूटे हुए हैं। अजमेर के राजनेता तो राजनेता, अफसर भी ऐसे आते हैं, जो केवल अपना मतलब सीधा करते हैं और चल देते हैं। ना राजनेताओं को अजमेर से कोई मतलब होता है और ना ही अफसरों को। राजनेता केवल वोटों की रोटियां सेंकते हैं और अफसर अपना अफसरी रौब झाड़ते हुए कार्यकाल पूरा कर जाते हैं। अब देखो, आनासागर में जलकुंभी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही है। और बढ़ेगी भी क्यों नहीं। इसे अफसरों की मक्कारी और राजनेताओं की अनदेखी ने पनपने जो दिया है। पहले यह जलकुंभी केवल बांडी नदी के आनासागर में आने वाले मार्ग तक सीमित थी, जिसका कभी भी उपचार नहीं किया गया। और अब यह पूरे आनासागर पर कब्जा जमा चुकी है। रोजाना सैकड़ों ट्रक-ट्रैक्टर-डम्पर जलकुंभी निकालने के बाद भी कम होने का नाम नहीं ले रही है। दरअसल, जलकुंभी को पूरी तरह साफ करने के लिए इसका रासायनिक-वैज्ञानिक उपाय किया जाना चाहिए, जो शायद जानबूझकर नहीं किया जा रहा है, क्योंकि यदि इसका उपचार करा दिया गया, तो अफसरों की जेबें कैसे भरेंगी, कमीशन कैसे मिलेगा। टेंडर कैसे किया जाएगा, टेंडर की अवधि कैसे बढ़ाई जाएगी और फिर कमाई का एक मोटा जरिया बंद हो जाएगा। अफसोस तो इस बात का है कि जलकुंभी निकालने के लिए नगर निगम द्वारा करीब सवा दो करोड़ रूपए लागत की नई डिवीडिंग मशीन मंगवा ली गई, जो चार दिन में ही हांफ गई। अब कोई यह पूछने की हिम्मत नहीं कर रहा है कि इन अफसरों ने यह मशीन क्या सोच कर मंगवाई थी और अब उसका क्या होगा। यदि मशीन चार दिन में खराब हो गई, तो उसका हर्जाना कौन भरेगा। हालांकि इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन चर्चाएं तेजी से चल रही हैं कि नई मशीन मंगवाने में अफसरों के बीच लाखों रूपए कमीशन के वारे-न्यारे हुए हैं। कुछ लोग इन चर्चाओं की सच्चाई जानने में जुट गए हैं। केवल कमीशनखोरी के मकसद से अफसरों द्वारा मनमर्जी के निर्णय किए जा रहे हैं। आनासागर को केवल रासायनिक उपचार ही बचा सकता है। इसके लिए अफसर जानबूझकर शहर के पर्यावरण विशेषज्ञों, पत्रकारों, समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों से चर्चा तक करना नहीं चाहते। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल आनासागर में पानी कम, गंदगी ज्यादा है, जिसके लिए हम, आप और शासन-प्रशासन के साथ-साथ राजनेता जिम्मेदार हैं।

प्रेम आनंदकर
शहर के अनेक गंदे नालों का पानी सीधे आनासागर में जाता है, जिसमें मल-मूत्र की गंदगी भी होती है। आनासागर के पानी को शुद्ध कर फिर से इसी में छोड़ने के लिए आनासागर के किनारे पर ही सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया, जो महज आनासागर के लिए ताबूत से ज्यादा कुछ भी साबित नहीं रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारी गंदगी के कारण आनासागर के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा पूरी तरह खत्म हो चुकी है। इसमें ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए रासायनिक पदार्थ डालना बेहद जरूरी है। जलकुंभी शुद्ध पानी में नहीं, गंदे पानी में ही पनपती है। आनासागर का पानी नियमित रूप से सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में शुद्ध होकर फिर से इसी में छोड़ा जाए और ट्रीटमेंट के समय निकलने वाली गंदगी को कई किलोमीटर दूर खाली स्थान पर डलवाया जाए। शहर के एक जिम्मेदार अफसर ने कुछ दिन पहले एक अखबार से बातचीत में यह तर्क दिया कि आनासागर में जलकुंभी ने जड़ पकड़ ली है, इसलिए खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। यह तर्क क्या किसी के गले उतरता है, लेकिन किसी ने भी इस पर सवाल खड़े नहीं किए। प्रशासन चाहता तो अजमेर में मौजूद अनेक विशेषज्ञों से भी चर्चा कर सकता था। अजमेर के ही महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का पर्यावरण विज्ञान विभाग तो काफी समय पहले ही बाकायदा आनासागर के दूषित-प्रदूषित होते पानी पर रिसर्च भी कर चुका है, जिसमें साफ कहा गया था कि आनासागर का पानी पूरी तरह जहरीला हो चुका है और इससे चर्म रोग फैलने की आशंका है। इसी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व पर्यावरण अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष यानी एचओडी प्रो. कैलाशचंद शर्मा, पर्यावरण विभाग के पूर्व एचओडी प्रो. प्रवीण माथुर को आनासागर के बारे में बहुत अच्छी जानकारी है। इसके अलावा सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में भी पर्यावरण के जानकार कुछ व्याख्याता हैं। कुछ पत्रकारों को भी इस बारे में अच्छी जानकारी है, लेकिन जिला प्रशासन और नगर निगम के अधिकारी इनसे चर्चा नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करते हैं, तो उनका अफसरी रूतबा कम हो जाएगा और खुद को बौना समझेंगे। यह जरूरी नहीं कि हर आईएएस अधिकारी सर्वगुण संपन्न और हर विषय का ज्ञाता हो। यदि कोई किसी विषय के बारे में नहीं जानता है, तो अफसरी के अहं को अलग रखकर चर्चा करने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन क्या करें साहब, विशेषज्ञ और जानकार जो उपाय बताएंगे, वह कुछ हजारों या कुछ लाखों रूपए में ही हो जाएगा और आनासागर की निकलती सांसें फिर लौट आएंगी, तो करोड़ों खर्च करने के नाम पर लाखों रूपए के वारे-न्यारे कैसे हो सकेंगे। बस दिक्कत यहीं है और इसीलिए रोजाना आनासागर का दम घोंटा जा रहा है।

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