*परिभाषा रिश्तों की*

रश्मि जैन
रश्मि जैन
“क्या कह रहे हो तुम,….. ऐसा नही हो सकता, मैं ‘सूरज’ की बात सुनकर एकदम सकते में आ गई”…
‘कितनी आसानी से उसने “आई लव यू” कह दिया,… हां, ‘मैं मानती हूँ,… ‘मैं भी उसे पसन्द करती हूँ’…
“मेरी अपनी भी कुछ सीमाएं है… मेरा शादीशुदा होना… मुझे कुछ भी ऐसा करने से रोक रहा है… क्योंकि ‘पर-पुरुष’ की कोई जगह नही मेरी जिंदगी में”….
“लेकिन कोई नही जानता… “इस रिश्ते की सच्चाई को, खोखलेपन को… जिस रिश्ते में अपनापन ना हो… विश्वाश ना हो… प्यार ना हो…उसे सारी जिंदगी ढोने से क्या फायदा”…
“सदा प्यार के लिए तरसती रही,… जैसे ही सूरज ने मेरी जिंदगी में कदम रखा… ‘मैं उसकी और आकर्षित होती चली गई… उसे मन ही मन चाहने लगी… ‘मुझे नही मालूम उसके मन में क्या था”….
‘एक दिन ‘सूरज’ का फोन आया… वो मुझसे मिलना चाहता था… ‘एक पार्क में मिलना तय हुआ… मुझे पार्क पहुँचने में थोड़ी देर हो गई… जब मै वहाँ पंहुची, तो सूरज बड़ी बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रहा था”…
“हम दोनों एक बैंच पर बैठ गए और इधर उधर की बातें करने लगे, ‘ सूरज के दिल की बेचैनी उसके चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी… मानो वो कुछ कहना चाहता है…पर कह नही पा रहा”…
“फिर अचानक उसने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया…मै एकदम अचकचा गई…
लेकिन मैंने भी हाथ छुड़ाने का कोई प्रयास नही किया… रोशनी, “मुझे तुमसे कुछ कहना है”…
देखो मुझे गलत ना समझना और नाराज़ नही होना “…
अरे, इतना संकोच क्यूँ आज, “सूरज जो भी कहना चाहते हो, साफ़-साफ़ कहो ना”…
” मुझे तुम्हारी कोई बात कभी बुरी लगी है क्या”…?
“देखो रोशनी,… मै जानता हूँ , तुम शादीशुदा हो… और तुम अपनी इस जिंदगी से नाखुश हो”… “मै तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ… और हमेशा खुश देखना चाहता हूँ… क्या तुम मेरा साथ दोगी”…?
” सूरज का ये कहना अप्रत्याशित रूप से मुझे चौका गया”… ये तुम क्या कह रहे हो… “सब कुछ जानते हुए भी, “नही सूरज ऐसा कैसे हो सकता है,.. समाज हमे इसकी इज़ाज़त कभी नही देगा… और मै स्वयं भी नही… तुम मुझसे काफी छोटे हो उम्र में…
देखो रौशनी, “हम दोनों एक ही नाव पर सवार है… मेरा तलाक हो चुका है… और तुम भी तो खुश नही हो ना… तो क्या समाज तुम्हे तुम्हारी खुशियां दिलवा सकता है… नही ना… और ‘प्यार में उम्र कोई मायने नही रखती’…
” हम दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह समझते है … प्यार करते है एक दूसरे से… फ़िर क्यों नही साथ रह सकते”…
“हम क्यों नही शादी कर सकते…? ये निर्णय तुम्हें खुद लेना होगा”…
“मै जानती थी, ‘सूरज गलत नही कह रहा’… पर, ‘मेरा मन’ मुझे इसकी इज़ाज़त नही दे रहा… मैंने अपना सर सूरज के कंधे पर टिका दिया… क्या ऐसा सम्भव है… मेरी आँखों में आँसू थे… जिन्हें सूरज देख नही पाया”…
“उचित-अनुचित की परिभाषा खोज रहा था” मेरा मन, काश! कोई मुझे बता सकता ”
“सही और गलत का अंतर”…!!!

– रश्मिजैन
दिल्ली

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