बूढे और राजनीति मे वक्त के साथ उतार पर आ गए नेताओं कै लिए देश के हर राज्य मे खोले गए वृद्धाश्रम अब बद होने चाहिए। इन वृद्धाश्रमो को सरकार राजभवन कहती है और इनमें रहने वाले राज्यपाल कहलाते हैं। इनमें से अधिकाँश वै हैं जो बिना सहारा लिए उठ बैठ नहीं सकते। थोडा सा बोलने पर हाँफने लगते हैं। खाने से ज्यादा दवा खाते हैं। सोने से ज्यादा जागते हैं, क्योंकि उन्हें उम्र के इस पडाव पर नींद ही नहीं आती। जो एक कमरे से चलकर दूसरे कमरे मे जा नहीं पाते, लेकिन राजभवन मे इतने कमरे होते हैं कि खुद उन्हें पता नहीं होता। सुख सुविधाओं के सागर मे गोते लगाते राज्यपालोँ पर हर माह करोड़ों रूपये खर्च होते है। लेकिन काम बहुत कम होता है। ज्यादा समय ये विश्वविद्यालय के दीक्षाँत समारोह या अन्य उद्घाटन समारोह मे मुख्य अतिथि होते हैं। साल मे चार पाँच बार सरकार की उपलब्धियो का अभिभाषण पढते हैं। असल मे केन्द्र मे सत्ता पाने वाली पारटी अपने थके हारे, लेकि न ऐसे नेताओं को जो बेकार बैठे बैठे पारटी की जडे खोद सकते हैं, उन्हें राज्यपाल बनाकर भेज देती है। या ऐसे नेता जिनका जातिगत वोटों का आधार होता है, लेकिन जिनकी पार्टी को सकि्य राजनीति मे जरूरत नहीं होती, उन्हें राजभवन भेजा जाता है। लेकिन इन पर खर्च होने वाली रकम हमारे टैक्स की होती है। जो जनता के विकास पर खर्च होनी चाहिए न कि किसी बूढे नेता के उत्थान पर। कैसी विडम्बना है देश मे करोड़ों बेसहारा बुजुर्गों के रहने का ठिकाना नहीं है। उनके लिए वृद्धाश्रम नहीं है। जो है वह खस्ताहाल हैं। अगर सरकार एक बुजुर्ग को पालने की बजाय करोड़ों बुजुर्गों क़ो इज्जत से जीने का आसरा दिलाए,तो कितना अच्छा हो।
ओम माथुर, अजमेर 9351415379