फेसबुक के असली नकली चेहरे

हेमंत उपाध्याय
हेमंत उपाध्याय
देखते ही देखते हम 21वीं सदी के प्रथम दषक को पार कर हाईटेक युग में पहॅुच गए। आज चपरासी से चेयरमेन तक मोबाईल को ऊंगली से सहलाते नजर आते हैं। हर स्पर्ष का अलग संकेत एण्ड्राईव महोदय समझते हैं। पहले गाड़ी के बैल रस्सी के इषारे पर चलते थे। आज ऊंगली के इषारे पर विष्व के एक कोने से दूसरे कोने तक संदेष पलक झपकते ही पहॅुच जाता है। ऊंगलियों का खेल तो सदैव प्रासंगिक रहा है। पत्नियॉ अपनी ऊंगली के इषारे पर पतिदेव को पुरातन युग से नचाते आ रही हैं, षायद इसी लिए उसे सौभाग्यवती कहते है। खास बात यह है कि मोबाईल आपरेटर किसी की मदद के बजाय उसकी विपत्ति को समय की तरह गवाह बन कर रिकार्ड करने में लगा रहता है। हर आदमी कैमरामेन हो गया है।हर चीज रिकार्डेबल हो गई है। बोस की मॉ मरे तो चल समारोह से चिता तक लकड़ी -कंडों से ढंकी देह के भी फोटू हर एंगल से खींची जाती है। यहॉ तक कि चिता का धुआं व लपटे भी रिकार्ड की जाती है । सभी को फेस बुक पर फोटू व विडियों में डालकर दुःख व्यक्त किया जाता है। संवेदनाएॅ इक्कठी कर छोटे से छोटा कर्मचारी बोस की गुडबुक में पहॅुच जाता है। राजनीति में चम्मचो ने फेसबुक का उपयोग अपने दल के नेताओं को महिमा मंडित करने के लिए तो वाट्सएप का उपयोग विरोधी दलों के नेताओं पर कीचड़ फेंकने के लिए किया है। जिसका लाभ उन्हें टिकिट पाने में व अपने उल्टे सीधे काम कराने में मिलता है। वाट्सएप ग्रुप मेसेज में ऐसे मेसेज भेजे जाते हैं, जो सबको पढ़ने दिखने लायक हो। जैसे पहले फिल्मों में सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र लिखा रहता था यू सामाजिक चित्र सब वर्ग के लिए है-सुहासिनी मुले,सचिव,चल चित्र,प्रमाणन मंडल। यहॉ यह जवाबदारी एडमिन की होती है। श्रेय का सेहरा उसके सर बंधता है तो बदनामी का ठिकरा भी उसी के सर फॅूटता है। फेस बुक में कोई चीज लगाना लिखना मतलब नदी में प्रवाहित कर देना।नदी जहॉ-जहॉ से गुजर रही है,वहॉ के लोग उसका उपयोग कर सकते हैं।उसमें से जल ले सके। उसमें अपनी तरफ से नया जल भी छोड़ सकते है। कुछ लोग अपनी आदत के अनुसार गंदा जल भी छोड़ देते हैं। अभी सरकार गंगा को गंदे जल से मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध है,इस लिए फेस बुक की सरिता पर ध्यान नहीं दे पाती। वाट्स एप गु्रप में व्यक्तिगत संदेष व्यक्तिविषेष की चाहत या आचरण के हिसाब से भेजे जाते हैं।जो अधिकांष ए ग्रेड के ही होते हैं। जो लोग फेस बुक पर भावना व्यक्त करते ह,ैंजरुरी नहीं कि उनका आचरण भी वैसे ही हो। कुछ फेसबुक पर बड़े -बड़े व आदर्षवादी व उपदेषात्मक चित्र व टिप्पणी देते हैं तो कुछ वाट्सएप पर अपनी जात बता देते हैं।क्योंकि वाट्स से उनको उम्मीद रहती है कि यहॉ हम उघाड़े तो होंते हैं पर सबके सामने नहीं होते। जैसे हमाम में रहते हैं वैसे रहते हैं और सिर्फ चाहने वाले ही देख पाते हैं। फेस बुक की बजाय वाट्सएप पर असली चेहरा दिखता है। जैसे एकदम आईने के सामने खड़ा होने पर दिखता है,परन्तु उसे सब नहीं देख सकते।फेैस बुक पर अक्सर वो चेहरा होता है जो लोक लॉज के कारण काफी मासूम होता है। फैस बुक के अधिकांष चालक फेैसबुक पर सभी के फैस देख सकते हैं,पर यहॉ हर चेहरा मूलरुप में नहीं होता। कई चेहरे नकली भी होते है।जिनके चेहरे लाली से रंगे होते है व कालिख हटा दी जाती है तो भावनाओं को षब्दालंकार से श्रृंगारित कर दुर्भावनाओं पर पर्दा डाला दिया जाता है। इसके लिए एक गीत इज्जत फिल्म का मुझे बार- बार याद आता है-‘‘ क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छूपी रहे नकली चेहरा सामने आए असली सूरत छूपी रहे ‘‘ हेमंत उपाध्याय 09424949839/09425086246
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