तीन अवस्थाओं से घिरा चक्र

हेमंत उपाध्याय
हेमंत उपाध्याय
प्रायः हर चीज की तीन अवस्थाएॅ होती है ,जिसमें उसके भिन्न-भिन्न रुप होते हैं । जैसे जीवन की तीन अवस्थाएॅ होती है – बचपन , जवानी एवं बुढ़ापा । पति के प्रति विवाहित स्त्री के जीवन में भी तीन आवस्थाएॅ होती है। पहले तीन साल चन्द्रमुखी , दूसरे तीन साल तक सूरजमुखी एवं बाद के सभी सालों में वह ज्वालामुखी होती है। तपती और तपाती रहती है।
वेतनभोगी कर्मचारी की माह में तीन अवस्थाएॅ होती है – वेतन मिलने के बाद पहले दस दिन तक वह सम्पन्न रहता है । ग्यारहवें दिन से बीस दिनों तक वह कृष्णपक्ष के चन्द्रमॉ की भॉति विपन्न होने लगता है और इक्कीसवें दिन से तीस दिन तक वह मरणासन्न अवस्था की ओर उत्तरोत्तर बढ़ते जाता है ।
सरकारी कर्मचारी – पहले पड़ाव पर जी हुजुरी , दूसरे पड़ाव पर कामचोरी एवं तीसरे पड़ाव पर सीना जोरी करता है। कुछ कर्मचारी पहले पड़ाव में इमानदारी ,दूसरे पड़ाव में बे -ईमानदारी व तीसरे पड़ाव में दुकानदारी में जुट जाते हैं ।
नेता लोग पहली अवस्था में जब उनके पास देने को कुछ नहीं होता , तो वे जन सेवा करते हैं , दूसरी अवस्था में देष सेवा करते हैं और तीसरी अवस्था में वे परिपक्व हो जाते हैं , अतएव स्वयं सेवा में अंतिम समय तक लगे रहते हैं।
इसी तरह आज -कल के महात्मा लोग पहले घर वालों को उपदेष देते हैं , घर वाले चुपचाप सुन लेते हैं ,तो समाज वालों को उपदेष देते हैं ,वे भी बेचारे सुन लेते हैं तो टीव्ही चेनल पर उपदेष देते हैं। अब न टी0व्ही0 चेनलों की कमी है और न उस पर उपदेष देने वालों की । ़भक्त पहले पड़ाव में भगवान से विभक्त नहीं होता। सेवा भाव से भगवान से जुड़ा रहता है । इसी लिए वह भगवान का भक्त कहलाता है । दूसरे पड़ाव में वह भक्त नहीं रह जाता । ढोंगी होने लगता है और तीसरे पड़ाव में भक्त की मनमर्जी ही चलने लगती है । वह भगवान में लीन हो जाता है । अतः स्वयंभू होकर स्वयं को भगवान कहने हेतु अपने अनुयायियों को प्रेरित करता है । फिर वह सबको अपनी इच्छा ऐसी ही व्यक्त करता है , जैसे उसकी इच्छा ही भगवान की इच्छा हो फिर वह स्वयं की ही आरती उतरवाने से नहीं चुकता ।
इस तरह वैसे भी देष में ऐसे ढ़ोगी ज्यादा हैं ,जो कि नाम से कुछ और रहते हैं और उनके काम कुछ अलग ही रहते हैं । लोगों को चाहिए कि वे ऐसे लोगों से बचकर रहे ,क्योंकि इससे मानसिक और आर्थिक दोनों ही तरह की हानियॉ उठानी पड़ती है । समय रहते यदि इस बात को समझ लिया जाए तो आसानी होगी । तीनों अवस्थओं का अंतिम चक्र परीक्षा की घड़ी व अंतिम परिणाम का रहता है। इसी लिए कहा गया है- ‘‘अंत भला तो सब भला ‘‘।

हेमंत कुमार उपाध्याय
सहित्य कुटीर, पंडित रामनारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा
9425086246 9424949839 [email protected]

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