विदेष से अच्छा स्वदेष

हेमंत उपाध्याय
हेमंत उपाध्याय
इंजीनियर साहब मालगुजार साहब के एकलौते पुत्र थे। उनके पिताश्री अंगरेजों के जमाने के मालगुजार थे सो धन की कोई कमी नहीं थी। बहुत माल गुजरने के बाद भी जो बचा था वो सात पीढ़ियों तक काम आवे। फिर भी दोस्तांे की देखा देखी ने उन्हे विदेशी नौकरी करने की प्रेरणा दी और वे अपने आजाद देश की सेवाओं से विमुख हो विदेश में अपनी सेवा देने पहॅुचे। पर्याप्त धन होने से हर चीज खरीदने की क्रय शक्ति उनके पास थी।वृ़द्ध पिता ,जवान पत्नी व एकमात्र नादान पुत्र बबलू व उसकी पत्नी बबली को वे भारत ही छोड गए थे। चॅूकि जीवन मृत्यु क्रय शक्ति के बाहर होते है, सो लाख इलाज के बाद भी उनकी बहू बबली व बेटा बबलू माता-पिता नहीं बन पाए और बच्चे ‘‘बच्चे ‘‘ ही रहे। दूसरी ओर पानी की तरह इलाज पर पैसा बहाने के बाद भी वृद्ध पिताश्री जो कि मालगुजार थे माल छोड़कर गुजर गए। इंजीनियर साहब को पता लगते ही वो आन लाईन हो लिए । चॅूकि गत सप्ताह ही वे पिताजी को देखकर वापस विदेश गये थे सो अनुबंध के तहत एक वर्ष के पहले स्वदेश नहीं आ सकते थे। सो पिताजी के अंतिम संस्कार का कार्यक्रम विदेश से ही आन लाईन देखने के साथ ही पूर्ण भारतीय विधान से अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। अंतिम यात्रा हेतु आन लाईन शव वाहिनी बुक करा दी।कंडे फ्लिप कार्ट पर बुक कर दिए थे, जिसके तुरन्त आने की कोई संभवना नहीं थी।कोई समझदार अपने रिश्तों की दुहाई देकर गौलन के यहॉ से कंडे लेकर आया पैसे मॉगे तो बोला फ्लिप कार्ट वाले कंडा आयंेगे तो रिप्लेस कर देंगे । उसका रास्ता देखेंगे तो आपके पड़ोस में इंजीनियर साहब के डेड की डेड बॉडी पड़े -पडे चार दिन गुजर जायेंगे हम तो चले जावेंगे आपको ही चार दिन गुजारना पडंेगे। आपका त्यौहार खराब हो जावेगा। इंजीनियर साहब ने सोचा बेटा बबलू एक्कलकोडा है कभी किसी के घर नहीं गया और न ही मेरे परिवार,समाज व दोस्त-यारों के उसके पास पते हैं। बहू के परिवार में भी कोई नहीं है। सो शव यात्रा की चेनलों पर स्लाईड चलवा कर स्टेंªथ खड़ी कर ली। बेटा कार्ड कैसे बॉटेगा सो पंडित से आनलाईन सलाह मशविरा कर 13वीं तक का कार्यक्रम व स्थान तक निर्धारित कर दिया। शोक संदेश ईमेल पर प्रिंटर को भेज कर घर से शव यात्रा निकलने से पहले ही शोक संदेश की अर्जेन्ट डिलिवरी ले ली।बबलू ने एक-एक को शोक संदेश हस्तगतकर कहा- ‘‘यह फ्री मील कूपन है। कोई भी फीस या टीका या टोकन अमाउन्ट देय नहीं है।‘‘ रिटन गिफ्ट में तांबे के लोटे ,केटली ,तपेले थाली भी मिलेगी‘‘। सपरिवार टाईम-टाईम पर जीमने पधारें। संगीतमय भजन संध्या का आयोजन भी किया गया है, इंज्वाय करें।‘‘भोजन स्वरुचि अनुसार ले। स्वादिष्ट फल और फलहारी भी रहेगा।
भोजन निर्माण के लिए बेस्ट केटरर को भी आन लाईन बुक कर लिया है व पिताजी की रुचि अनुसार स्वरुचि भोज के बहुत से मिनू भी तय कर लिये। दिन भर कोल्डिंªक्स,चाय,नास्ता, ठंडा पानी सब कुछ की व्यवस्था के साथ थ्री स्टार होटल भी सब एसी कमरों के साथ पूरी बुक कर ली। चॅूकि भारत में दिन निकल आया था तो विदेश में रात हो गई सो इंजी0साहब को एक दिन की छूट्टी भी नहीं लेना पड़ी।जबकि शवयात्रा में शामिल होने वालों को काम धंधा छोड़ना पड़ा। इंजीनियर साहब ने सीधे प्रसारण के लिए अच्छी क्वालिटी के कैमरों से चारांे तरफ से शूटिंग का काम अच्छे मुव्हीमेकर को दे रखा था। इसमें अच्छी आवाज वाले कामेन्टेटर/उद्घोषक को रखा गया था। जो संजय की तरह पल-पल की खबर दे। सही माने तो इंजीनियर साहब भी अपने आप में धृतराष्ट्र ही थे। उनके राष्ट्र भारत में सब कुछ था जैसे-धन-दौलत, प्रेम-स्नेह, प्यार-यार , आशीष ,आदर-सत्कार, मान-सम्मान संस्कार-संस्कृति प्राकृतिक सौंदर्य गॉव – गौरी ,गरिमा पर वो अपने राष्ट्र को देख ही नहीं सके। उनके देश में सहगल ,मुकेश, किशोर , रफी के गानों की गूंज थी तो लता ,हेमलता, आशा, सुमन के सुमधुर गीतांे में प्रेम की धारा बहती थी। प्रदीप के गीतों में देश भक्ति थी तो भरत व्यास धर्म की गंगा बहा देते थे।
चॅूकि गंजी की प्रथा उनके यहॉ थी सो शलून वाले को आन लाईन बुक कर दिया। जिसने बबलू को मोबाईल पर स्मार्ट हेयर डेªसिंग में ही आने को कहा। घाट पर जाने से नाई मना कर गया बोला-‘‘ मैं बारबर हॅू नाई नहीं।‘‘ घाट पर जाने से मेरे धन्धे पर असर पड़ेगा । आप यहॉ आकर गंजी करा लें। मै घाट-घाट नहीं जाता। यदि मैं घाट पर जाने लगा तो न मैं शाप का रहॅूगा न ही घाट का। धोबी का डॉग बन जाऊॅगा। अंखीर बबलू को दोस्त के साथ टकली कराने के लिए सलून ही जाना पड़ा।
उद्घोषक संजय उवाच- आप सब के इस अंतिम यात्रा में तहेदिल से स्वागत है । मैं आपका ज्यादा वक्त जाया न करते हुऐ अपना कर्त्तव्य प्रारंभ करता हॅू। मालगुजार साहब की शव यात्रा घर से प्रारंभ होने मैं अभी कुछ ही देरी है । तब तक मैं आपको गली के आसपास के माहौल से वाकीफ कराता हॅू। गली में दीवालों पर बालिकाएॅ द्वारा आकर्षक सांझाफूली बनाई जा रही है । यहॉ सांझाफूली का त्यौहार अपने पूरे सबाब पर है। चौराहो पर बड़े- बड़े पंडाल तैयार हो रहे हैं । ये विध्नहर्ता के आगमन का संकेत है। बड़े पंडाल में शहर के राजा विराजेंगे । कई महाराष्टीयन घरों में गुलाबाई की भी तैयारियॉ चल रही है । धर्मशाला में बालक -बालिकाएॅ नवदुर्गा में विजेता बनने के लिए डांडिया की तैयारी कर रही हैं । बच्चे गुल्ली डंडा खेल रहे हैं। संजय पुनः उवाच – विघायक महोदय ने आकर फूलों का बड़ा चक्र चरणों में रख कर नमन कर दिया है। मालगूजार साहब की बदौलत विधायक महोदय को इस क्षे़ से अच्छी बढ़त मिलती थी । लो यात्रा प्रारंभ हो गई । लोग जगह-जगह खड़े होकर आखरी नमन कर रहे है । सब कुछ है कमी है तो सिर्फ एक इंजीनियर साहब की। महायात्रा अब उस कालेज के सामने से गुजर रही है, जहॉ से प्रशिक्षण लेकर इंजीनियर साहब विदेश जाने योग्य बने। प्रोफेसर लोग दुःखी हैं । उ्दघोषक ने एक प्रोफेसर के मुॅह के सामने माईक लगा दिया और पूछ- सर आपकेा कैसा लग रहा है। सर दुःखी हो बोले – हमने इंजीनियर साहब को आत्म निर्भर होने का प्रशिक्षण दिया दुख है कि उन्होने देश छोड़ दिया । विदेश जाकर सर्विसकर सर को विश कर रहे हैं । एक सर ने माईक के अन्दर मंुह डालकर कहा – हमें उम्मीद थी कि वे प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री की योजनाओं का लाभ लेकर स्वयं अपना उद्योग चलायेंगे । स्वयं का उद्योग डालने के लिए भी पर्याप्त धन था उनके पास। इसी बीच संजय ने देखा – सब लोग- आगे निकल गए सो उसने बाईक पर सवार होकर पिकअप किया ।
इंजीनियर साहब ने आन लाईन शहर के सर्वोत्तम बैंड बाजों को बुक कर दिया।जो हल्की व शहनाई के बजाय बारात वाले बुक हो गए। जो सब हाईफाई कॉच व बल्ब लगी डिस्को ड्रेस लगाकर आरकेस्ट्रªा लेकर आ गए। उनकी धून पर शव वाहिनी तक कंधा देने वाले भी नाचते झुमते चलने लगे।लोग बारात के प्रोसेशन सा आनन्द लेने लगे। ऊधर लोग आरकेस्ट्रा की धूनों पर झुमते नाचते रहे। ठंडे व हेवी नास्ते का ठेका विदेशी कोल्ड्रिंक्स कम्पनी को आन लाईन अनलिमिटेड दे दिया था। उनका इतिहास व दावा रहा है -आज तक उनकी सेवा से मौसाजी, फूफाजी, जीजाजी तो दूर कोई साधारण बाराती भी कभी रुष्ठ नहीं हुआ है।
पुनः संजय उवाच- ‘‘मालगुजार साहब की शव यात्रा धूमधाम से अपना रास्ता सफलतापूर्वक गूजारते हुए सुहावने मौसम में अपने अंतिम पड़ाव पर पहॅुच चुकी है। झरने से स्वच्छ निर्मल जल कल-कल की मधुर ध्वनि सुना रहा है।चारोें ओर चिड़ियाएं चहक कर अपने घोसलों में निंद्रा के लिए प्रस्थान कर रही है।मंेंढक टर्र -टर्र कर रह,े कोयल कॅूह-कॅूह बोल रही है। बबलू ने धुआं करता कंडा दादाजी के सिर की तरफ रख दिया है पर अफसोस अभी भी अंतिम संस्कार में अनिश्चित कालीन देरी है। व्यवधान के लिए हमे खेद है, क्योंकि अंधेरा होने से केमरे में सब श्याम ही श्याम दिख रहा है। पिक्चर क्वालिटी ठीक नहीं है। सो इंजीनियर साहब ने मौके की नजाकत को समझते हुए यथा स्थिति बनाये रखने के निवेदन के साथ सब को एक खुशखबरी दी कि उन्होने आन लाईन जनरेटर वाले को बुक कर भेजा है।गूगल जीपीएस के अनुसार वो हरिश्चन्द्र घाट से काफी नजदीक आ गए हैं।तब तक नास्ते पानी का लाभ उठाये,ं निवेदन है कि व्यवस्था बनाए रखें।
इसी बीच अंधेरे का फायदा लेकर अधिकांश अवसरवादी पतली गली से अपनी-अपनी बाइकों से निकल लिए।कुछ ने नास्ते के पेकेट व पानी की बाटलें भी रख ली। मात्र वो ही लोग बचे जो शव वाहिनी में ठसकर आए थे व उनके पास वापसी का अन्य कोई साधन नहीं था । कुछ नजदिकी रिश्तेदार थे ,जिन्हें तेरह दिनों तक उनके यहॉ ही जीमना चूठना था। जनरेटर का उजेला होते ही पता चला की स्टेªªन्थ बहुत कम रह गई है।
घाट पर पहुॅच कर अंतिम संस्कार के कोई ठिकाने नही थे। इंजीनियर साहब लकड़ी, काठी बुक कराना भूल गये थे। क्योंकि उनके कार्यरत देश में जलाने की नहीं गाड़ने की प्रथा है। मरने पर हवई पार्सल /कारगो से स्वदेश भेजने की कंडिका अनुबंध में होती है। पुराने दोस्तों ने लकड़ी कंडो के रियम्बर्समेंट की प्रत्याशा में जेब से खर्चा कर लकड़ी तुरकाठी की व्यवस्था करा दी।
जैसे-तैसे गीने चुने लोगों ने दाह संस्कार की रस्म अदा की। इस दौरान भी बाजे वाले डिस्को गीत ही बजा रहे थे। एक वृद्ध को यह नागवारा हुआ सो रोका, तब एक पुराना काया गीत बजाया गया-‘‘सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है। तुम्हारे महल क्या चौबारे यहीं रह जाऐंगे सारे । वहॉ पैदल ही जाना है ।
तब इंजीनियर साहब को अफसोस होने लगा। अपार पैसा खर्च करने के बाद भी वे अपने लिए सब कुछ करने वाले पिताश्री को अंतिम बिदाई तक नहीं दे पाए। काश मैं विदेशी नौकरी की लालच छोड़कर देश में ही होता तो खुद विदेशी कम्पनी का नौकर न ही होकर स्वदेश में स्वयं का उद्योग लगता सौ -दौ सौ अपने बेराजगार भाई बहनों को काम धन्धा देेता और सब से बड़ी बात पिताजी की सेवा के साथ देश सेवा भी कर पाता व मुखाग्नि देने की पिताजी की अंतिम इच्छा भी पूरी करता । बेटा व पत्नी भी निराश्रित व बेलगाम, दिशाहीन नहीं होते और उन्हांेने अपनी कम्पनी को सब हर्जाना भर कर स्वदेश यात्रा का टिकिट बुक करा लिया।
अंतिम यात्रा के सीधे प्रसारण से इंजीनियर साहब को यह लाभ हुआ कि उनकी ऑखें खुल गई और उन्हे सीधे देश आने की प्रेरणा मिली।पंडित ने उन्हे पिंड में ही पिता के दर्शन करने एवं दान पूण्य कर श्रद्धा से श्राद्ध कर प्रायश्चित करने की सलाह दी जो सहर्ष स्वीकार कर दूसरे ही दिन भारत के लिए रवाना हो गए। ़ हेमंत़ उपाध्याय
9425086246/9424949839
व्यंग्यकार एवं लघुकथाकार कवि एवं ललित निबंधकार ़
साहित्य कुटीर,गणगौर साधना केन्द्र,पं0रामनारायण उपाध्याय वार्ड 450001 म0प्र0
[email protected]

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