अपने प्रधान मंत्री की नोट बंदी की प्रतिबद्धता से इतना तो साफ़ हैं की वह जनता को जो सन्देश देना चाहते थे किसी हद दे चुके हैं जनता उनके साथ खड़ी भी दिखाई देती है । पूरा देश भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में प्रधान मंत्री के साथ ढेरों कष्ट सहकर भी तन कर खड़ा है ? लेकिन देखने में यह आ रहा है की खुद उनकी सरकार के अफसर और पार्टी के अधिसंख्य नेता उनके साथ नहीं हैं , और न ही उनकी कोई प्लानिंग है और न ही बैंक पर उनका कोई कंट्रोल है क्योंकि एक ओर पूरा देश 4 से 8 घंटे तक बैंक औरएटीम की लाइनों में लग कर 2 या 4 हजार रुपये मुश्किल से पा रहे है और धन की कमी से शादियां बहुत मुश्किल से हो पा रही हैं अबकी उनकी अपनी ही पार्टी के कई नेताओं के बेटी बेटे की शादियों में सैंकड़ो करोड़ रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा है? और तो और स्वयं प्रधान मंत्री कोई ठोस काम करने के बजाय 35 दिन में 35 से अधिक आदेश पारित कर चुके है ? लेकिन जनता की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही है ? उधर नोट बंदी के बाद अब तक जिस प्रकार से सैंकड़ो करोड़ों की तादात में नए नोट पकडे जा रहे है वह सरकार के नोट प्रबंधन और विश्वनीयता पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है ? और आरबीआई के गवर्नर की विश्वशनियता पर भी प्रश्न चिन्ह लग रहा है ? लेकिन उससे बड़ा सवाल स्वयं प्रधान मंत्री जी की क्रेडिबिल्टी पर भी खड़ा हो रहा है क्योंकि संसद का पूरा सत्र बिना किसी कार्य के हो हल्ले के भेंट चढ़ गया है 30 दिसम्बर के बाद निश्चित तौर पर यह तय होगा की क्या गुजरात की तर्ज पर पुरे देश का शासन चलाया जा सकता है ? और क्या लोकतंत्र में केवल एक व्यक्ति की मानसिकता से लोकतंत्र जिन्दा भी रह सकता है या नहीं ? क्योंकि सरकार अभी तक या पता नहीं लगा सकी है की करोडो की संख्या में मिलने वाले 2000 के नोट काले धन के कुबेरों के पास कहाँ सेआये हैं ?
एस.पी.सिंह , मेरठ ।