बचपन में हुई शादी को तोड़ पढ़ना चाहती हैं रामगणी

ramgnai-बाबूलाल नागा-
अपनी 6 बहिनों के साथ रामगणी का भी 11 साल की उम्र में बाल विवाह कर दिया गया। ससुराल वाले आते और प्यार से समझा बुझाकर उसे ले जाते। तीन साल तक यूंहि चलता रहा। होश संभाला तो इस बात का अहसास हुआ। अब रामगणी ससुराल नहीं जाना चाहती बल्कि पढ़ लिखकर पुलिस ऑफिसर बनना चाहती है। अपनी बचपन में हुई शादी के खिलाफ वह अपने ही परिवार व ससुराल वालों की प्रताड़नाओं को झेल रही है।
18 साल की रामगणी भीलवाड़ा जिले के सहाड़ा ब्लॉक के गोवलिया ग्राम पंचायत के खसूरिया गांव की रहने वाली हैं। परिवार में माता-पिता के अलावा 9 बहिनें हैं। तीन बहिनें उससे बड़ी हैं जबकि चौथे नंबर पर वह स्वयं। 5 बहिनें रामगणी से छोटी हैं। दो बहिनों की शादी तो 18 साल की उम्र में गांव और समाज के सामने की लेकिन बाकी सात बहिनों की जो नाबालिग थीं, की शादी गुपचुप तरीके से एक ही मंडप में कर दी गई। उस समय रामगणी 11 साल व उसकी सबसे छोटी बहिन मात्र 2 साल की थी। रामगणी कहती है, ‘‘मुझे ज्यादा कुछ याद नहीं पर उस वक्त मेरी उम्र लगभग 11 साल की थी। मुझे पता भी नहीं था कि मेरी बड़ी बहिनों के साथ मेरी भी शादी होने वाली है। मैंने तो उस दिन पेंट शर्ट पहन रखा था। मेरे मामा ने मुझे डांटकर लहंगा-कुर्ता पहनाया और शादी के मंडप में बैठा दिया।’’
पढ़ने को कहती तो पड़ती मारः रामगणी की शादी माजावास गांव में हुई। शादी के बाद उसके ससुराल वाले आते और प्यार से समझा बुझाकर उसे अपने साथ ले जाते। रामगणी के परिवारवाले भी उसे भेज देते। वह ससुराल जाने का विरोध करती और रोती। पर उसकी कोई नहीं सुनता। ससुराल में 7 सदस्य हैं। चार ननदें, सास-ससुर व पति। घर का सारा काम उसी से ही करवाते। वह कहती है, ‘‘मेरी ननदंे स्कूल जातीं और मैं घर पर रहकर पूरा काम करती। उन्हें स्कूल जाता देख मेरा भी काफी मन करता पर मेरे लिए यह अवसर नहीं था। इस बीच मेरी पढ़ाई बीच में ही छूट गई।’’ कभी-कभार वह अपने गांव अपने माता-पिता के घर भी आती। यहां वह अपने पिता से पढ़ने की बात कहती। पिता पढ़ने की बात सुनकर उसे मारते-पीटते और जबरन ससुराल वापस भेज देते।
मामा का मिला साथः रामगणी के मामा अध्यापक हैं। उन्होंने रामगणी के पिता को समझाया और उसे पढ़ाने की बात की। उनकी दखल से रामगणी को पढ़ने की मंजूरी मिल गई। उसने आठवीं में प्रवेश लिया लेकिन ससुराल जाने के कारण वह पढ़ नहीं पाई। 6 माह ही वह पढ़ पाई और जैसे-तैसे अपना कोर्स पूरा करके आठवीं पास की। आगे 9वीं में प्रवेश लेने के लिए पिता से बात की तो उन्होंने मारपीट कर खेत में काम करने के लिए भेज दिया पर मामा ने जैसे-तैसे पिता को समझा कर गोवलिया गांव में 9वीं में प्रवेश दिलवा दिया। उन्होंने ही स्कूल फीस का बंदोबस्त किया। रामगणी के पति ने भी उसका साथ नहीं दिया। कह दिया पढ़ाई करनी है तो अपने घर पर ही रहे। यहां आने की कोई जरूरत नहीं है। इस बीच पिता ने एक शर्त रख दी। कहा मैं 10वीं तभी पढ़ाउंगा जब तुम ससुराल जाओगी। मजबूरी में रामगणी ने यह शर्त मान ली। इस तरह उसने 10वीं का ओपन फार्म भरा।
पिता ने बेच दी साइकिलः रामगणी स्कूल जाने लगी लेकिन शाम को घर आती तो उसके लिए काम का ढेर मिलता। उसके घरवाले पूरा काम उससे ही करवाते थे। यूंहि एक साल गुजर गया। इन परिस्थितियों की वजह से उसकी प्रतिभा मारी गई। जो लड़की पढ़ाई में कभी होशियार थी उसने 38 प्रश्तिात अंकों के साथ दसवीं कक्षा पास की। इस माहौल की वजह से उसका करियर चौपट हो गया। वह जब 9वीं थी तब स्कूल से साइकिल मिली थी जो उसके पिता ने बेच डाली ताकि वह आगे पढ़ नहीं पाए।
पर नहीं मानी हारः रामगणी के हौसलों में कोई कमी नहीं आई। उसमें आत्मविश्वास आया है। आज वह खसूरिया से पैदल ही 3 किलोमीटर चलकर खांखला गांव पढ़ने आती है। अभी वह यहां दसवीं में पढ़ रही है। अब वह अपने सपनों को पूरा करने में लग गई है। उसने अपना रहन-सहन भी बदल लिया है। अब वह पेंट शर्ट ही पहनती है। ससुराल जाती है तब जरूर साड़ी पहनती है। वह मोटर साइकिल चलाती है। इच्छा तो ट्रक चलाने की है। अपनी जिंदगी अब अपने तरीके से जीना चाहती है। कहती है, ‘‘मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं। इस तरह पापा व पति की गुलाम बनकर नहीं जीना चाहती। घरवाले नहीं पढ़ाएंगे तो भी मैं हॉस्टल में रहकर आगे की पढ़ाई करूंगी। मुझे पुलिस अफसर बनना है। जो मेरे साथ हुआ वो मैं किसी ओर के साथ नहीं होने दूंगी।’’ बहरहाल, रामगणी अपनी बचपन में हुई शादी के खिलाफ आ खड़ी हुई है। सामाजिक बंधनों को तोड़ आगे निकलना चाहती है। ससुराल जाने की बजाय अब वह पढ़ना चाहती है।(लेखक विविधा फीचर्स के संपादक हैं)

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