तूझे देखने की आदत सी हो गई,
तूझे सोचने की आदत सी हो गई,
जो लम्हे गुजारे थे हमने साथ में,
उन्हेंं गुनगुनाने की आदत सी हो गई,
टुटती हूँ , बिखरती हूँ,खुश्ख सी रहती हूँ,
पर तेरी आहट सुनते ही !!
खुद को समेटने की आदत सी हो गई,
मुखौटों से भरी ये जिंदगी मेरी,
हर हाल मे पहना मखौटा नया,
दर्द मे भी तो हँसती हूँ, देखो जरा,
रोक लेती हूँ अहसास सोचो जरा,
जिंदगी का फलसफा भी अलग सा रहा,
लड लड के जीने की अब आदत सी हो गई,
मैंने देखी हैं जज्बात की आंधिया,
आँखो से भी तो बहती हैं खामोशिंया,
तुमने देखा नही मुझको मुडकें कभी,
रौंदे जज्बात मेरे सभी के सभी,
देखो अब तो खुदा भी मजा ले रहा,
उसे भी !!!
मुझे हर वक्त रूलाने की आदत सी हो गई !!
– अनीता अजय हांडा, मुम्बई (महाराष्ट्र)
Nice poem. Full of life.