मन

डा. एम, एस, फोगाट
डा. एम, एस, फोगाट
मन पर काबू पाना होगा वरना नहीं ठिकाना होगा
मन से तन को काबू करलो, तन से मन मुट्ठी में भर लो
तन और मन जो वश में होंगे, धन तो बरबस आना होगा
तेरे पास खज़ाना होगा जो जग ने ना जाना होगा
मन पर काबू पाना होगा वरना नहीं ठिकाना होगा

वशीकरण से आदत बनती, और आदत से जिंदगी ढलती
प्रगति हो या पतन तेरा बस आदत में शुम्मार है बंधू
आदत ही मानव बस तेरे, जीवन का आधार है बंधू
आदत सही बनाना होगा, फिर जो चाहे चाहना होगा
मन पर काबू पाना होगा, वार्ना नहीं ठिकाना होगा

मन तो है शैतान मचल कर इधर उधर हो जाता है
कोई न जाने कब कब, किस किस, इंद्री संग खो जाता है
गर इस पर तेरी पकड़ न होगी, ये तुझको भटकाता है
भटक गया तो जाना होगा, कोई नया बहाना होगा
मन पर काबू पाना होगा वरना नहीं ठिकाना होगा

सहयोगी ये सरल बहुत है, तन मन तेरा तरल बहुत है
तरल निशानी है पानी की, सरल जवानी है ठानी की
ठान रवानी बस में करले जीवन की कश्मोकश हरले
कठिन राह से जाना होगा, वरना लक्ष्य गवाना होगा
मन पर काबू पाना होगा वार्ना नहीं ठिकाना होगा

डा. एम, एस, फोगाट
सेवानिवृत महाप्रबंधक
बैक आफ बड़ौदा

2 thoughts on “मन”

  1. Man is nothing but propositions and alternatives .So it needs determination to control this imginary power.Man should be our slave not master.It should sit under our foot no on our head.Use it like a ladder.climb on it .reach to target and jump over the last hurdle leaving this man alone to vanish itself

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