असुरक्षा का भाव

हेमंत उपाध्याय
हेमंत उपाध्याय
एक ईमानदार अधिकारी थे । वे सब की समस्या सुनते व हल करते। वो गरिबो के दुख दर्द से वाकिफ थे ।क्योकि वे स्वंम ग्रामीण क्षेत्र के किसान के सुपुत्र थे । सारे शहर के सभ्रांत लोग कोई न कोई बहाने उनसे मिलते रहते थे । सर्वोच्च पद पर होने के बाद भी उनके चहरे पर दमंभ का कोई पहरेदार नही था । हां सरकारी नियमों के पालनार्थ बंगले पर जरूर गार्ड तैनात रहते थे। जिन्हें भी निर्देश थे कि हर आने वाले को मिलने के लिए खुले पार्क मै बिठाया जावे तकि सभी से खुले मै सबके सामने दिल खोलकर चर्चा हो। वे आपने अधीनस्थों से ज्यादा घुलते मिलते नहीं थे । वे मानते थे कि स्टाफ से प्रेम का नतीजा भ्रष्टाचारी का भतीजा । स्टाफ उनको मिठाई का डिब्बा देने की भी हिम्मत नहीं करता था ।मिठाई का डिब्बा माने जो काम ही नहीं हुये उसका बिल पास कराने के लिए मिठाई के साथ नकद बडे नोट । कोई मिठाई का डिब्बा लाता तो सारे स्टाफ के सामने मिठाई का एक पीस लेकर सब को बांटने हेतु कहते । सो कोई नोट युक्त मिठाई का डिब्बा लाने की हिम्मत नहीं करता । इस व्यवहार से सारे स्टाफ मै आसुरक्षा का भाव था। खीज कर कर्मचारी नेता प्रदर्शन व शिकायते करते रहते थे। जिसके बाद भी वे शान से चलते थे । जिसे देख लोग कहते हाथी चले बाजार …. भोंके हजार । हेमंत उपाध्याय । व्यंग्यकार व लघुकथाकार ।9424949839 9425086246 7999749125 gangour knw.gmail.com

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