लीपा (पत्रकार, प्रकाशकों की अखिल भारतीय संस्था), दिल्ली द्वारा इन्टरनेट पर निम्र समाचार/आर्टीकल डाला गया है:
एक कर – एक व्यवस्था यानी जीएसटी को लेकर देश भर में चर्चा है। अखबारों के बीच भी काफी भ्रम की स्थिति है कि क्या वो जीएसटी के दायरे में आते हैं या नहीं। उन्हें जीएसटी देना है या नहीं। सरकार ने जीएसटी के लिये टैक्स स्लैब निर्धारित किए हैं, जिनके अंतर्गत कुछ चीजें जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। इसी स्लैब में अखबार एक प्रोडक्ट के रूप में जीएसटी के दायरे से बाहर है अर्थात अखबार की बिक्री पर कोई टैक्स नहीं है । अखबार की बिक्री जीएसटी से फ्री है। लेकिन उसमें प्रयोग होने वाले कम्पोनेंट्स जीसटी के दायरे में हैं। अखबारी कागज (इसे न्यूज प्रिन्ट भी कहते हैं) को 5 प्रतिशत जीएसटी टैक्स स्लैब में रखा गया है। यह न्यूज प्रिन्ट रोल के रूप में हो या कटा हुआ हो 5 प्रतिशत में ही आएगा। जबकि अन्य पेपर को, न्यूज प्रिन्ट को छोडक़र, 12 प्रतिशत स्लैब में रखा है। इसी प्रकार जो स्याही/इंक प्रन्टिंग के काम में आती है उसे 18 प्रतिशत में रखा है।
ऐसे में भले ही अखबार एक प्रोडक्ट के रूप में जीएसटी से बाहर हो लेकिन जीएसटी नम्बर लेना सभी अखबार मालिकों के लिये जरूरी है। क्योंकि आप भले ही जीएसटी के दायरे में ना हों लेकिन आपको सामान देने वाला व्यापारी जरूर जीएसटी के दायरे में होगा। भारत में रजिस्टर्ड कोई भी संस्था, यदि किसी भी प्रकार के व्यवसाय में है, जो 5 हजार से अधिक रुपए की खरीद-फरोख्त करती है, तो जीएसटी रजिस्ट्रेशन उसके लिये अनिवार्य होगा।
लीपा के उपरोक्त कथन के सम्बन्ध में हमें कुछ कहना है
1. जी एस टी कानून में यह प्रावधान है कि छोटे व्यापारी, जिनका टर्नओवर 20 लाख से कम है उन्हें जी एस टी टैक्स कानून में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य नहीं है। अर्थात वे यदि रजिस्ट्रशन नहीं कराना चाहें तो उन्हें इसकी छूट है। ऐसे व्यापारी अपनी बिक्री पर कोई जी एस टी बसूल भी नहीं कर सकते। ऐसे व्यापारी जो भी माल खरीदेगें वह सब जी एस टी देकर ही खरीदेंगे और उनके द्वारा चुकाया गया जी एस टी उनका स्वयं का खर्चा माना जाएगा।
2. जिन अखबारों का टर्नओवर 20 लाख से कम है अर्थात जिनकी अखबार की बिक्री और विज्ञापन की प्राप्ति, दोनों मिलाकर 20 लाख से कम है, उन्हें जीएसटी नम्बर लेना आवश्यक नहीं है। वे चाहें तो नम्बर लें, चाहें तो नम्बर न लें। जो अखबार वाले जी एस टी में रजिस्टर्ड नहीं हैं वे सरकारी या अन्य विज्ञापन के बिलों पर काई जी एस टी चार्ज नहीं कर सकते।
3. अनरजिस्टर्ड अखबार वाले जब विज्ञापन के बिल सरकारी विभाग डीएवीपी, डीपीआर या अन्य प्राइवेट पार्टी को जारी करेंगे जिनका जी एस टी में रजिस्ट्रेशन हैं तब इन व्यापारियों इस प्रकार के नरजिस्टर्ड डीलर से प्राप्त विज्ञापनों के बिलों की अलग से एन्ट्री करते हुए इन पर एक बार 5 प्रतिशत की दर से जी एस टी चुकाना होगा।
4. इस जीएसटी की जिम्मेदारी विज्ञापन दाता की है चाहे यह रकम विज्ञापन छापने वाला अखबार विज्ञापन बिल में जी एस टी चार्ज करके भरे, चाहे वे बिना जी एस टी वाले बिल के कारण खुद भरें।
5. यह बात साफ है कि 20 लाख तक के टर्नओवर वाले अखबारों को जीएसटी लेना जरूरी नहीं है।
ये सभी बाते कानून से सम्बन्धित हैं अत: इनके सम्बन्ध में अपने सीए या कानूनी सलाहकार से सलाह अवश्य लेलें तभी कोई निर्णय लें।
एन. के. जैन, सदस्य मीडिया फोरम, अजमेर मो. 9414004270