विकास का मतलब मूर्ति खड़ी करना

देवेन्द्रराज सुथार
देवेन्द्रराज सुथार
भारत एक विकासशील देश है। और भारत एक विकासशील देश ही रहेगा ! क्योंकि भारत में नेताओं की अक्ल भैंस चराने गयी है। अब देखते है अक्ल की घर वापसी कब होती है ? बरहाल, मूर्ति सरीकी सरकार को मूर्तियों से इत्ता मोह है कि मूर्तियों के निर्माण के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। वैसे भी भारत में लोग ही पागल नहीं होते, भारत में नेता विकास को भी पागल होने का सर्टिफिकेट देनी की काबिलियत रखते है। कितने महान नेताओं की जन्मस्थली है अपना देश। ऐसे में विकास का विकास धरा का धरा ही रह जाता है। बीमार विकास के इलाज की असल दवा सरकार करना ही नहीे चाहती। बस ! बाहर से मरहमपट्टी करवाकर विकास को दुरुस्त दिखाने का खेल रचकर अपना काम बनाने की जुगत में रहती है। हुजूर ! भारत का विकास बीते कई सालों से भूखा है, उसे भरपेट नहीं तो सही पेटभर खाना तो चाहिए। भारत का विकास नंगा भी है, उसे दो जोड़ी कपडे चाहिए। भारत का विकास बेरोजगारी में बावला होता जा रहा है, उसे रोजगार चाहिए। भारत का विकास सरकारी अस्पतालों में सांस-सांस के लिए तड़प रहा है, उसे जीवनदायिनी ऑक्सीजन की सख्त जरूरत है। भारत का विकास बेघर है, उसे सर्दी, गर्मी, बरसात इत्यादि से बचाव के लिए सिर पर छत चाहिए। हुजूर ! विकास को चाहिए कुछ ओर होता है और आप दे कुछ ओर देते है। जो चाहिए उसे वो क्यों नही दे देते ? आपने तो धार लिया है कि भारत के विकास को यहां तो शौचालय चाहिए है या मूर्तियां। तभी तो आप दो ही काम पर आमदा है। हुजूर ! यह राजतंत्र नहीं है, यह लोकतंत्र है। आप शायद यह भूलते जा रहे है ! राजतंत्र में राजा अपनी मूर्तियां बनाने की परंपरा का निर्वहन करते थे। ऐसे कहे तो राजा मूर्तियां बनवाने के लिए पैदा होते थे। यहां तक खजुराहो की कामुक मूर्तियां बनवाकर अपनी कामुक शक्ति का नग्न नृत्य इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में दर्ज करने में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी। कामुक मूर्तियां भी ऐसी कि हर किसी को आसाराम बनने पर विवश कर दे। खैर ! वो राजतंत्र का रूतबा था। लेकिन, अब लोकतंत्र में कोई यदि हाथियों के साथ अपनी मूर्ति बनवाकर अपना कद बड़ा करना चाहे तो यह अनुचित ही कहा जायेगा। हां ! यह बात भी है कि जनता नेताओं को भगवान मानने की भूल जरूर कर देती है, तो इसका मतलब यह तो नहीं होता कि आप अपनी ही मूर्ति मंदिर में विराजित कर सुबह-शाम आरती करवाना शुरू करवा दे। सरकार के भेजे में तो बस यही बात घुसी हुई है, विकास का मतलब मूर्ति खड़ी करना है। इसलिए तो सरदार पटेल की 180 मीटर ऊंची तो शिवाजी की 192 मीटर ऊंची मूर्ति के बाद भगवान राम की 100 मीटर ऊंची मूर्ति खड़ी करने के ख्याल को जमीन दी जा रही है। यदि सरकार की संवेदनशीलता थोड़ी-सी भी मूर्तियों के नीचे बोरियां बिछाकर रात काटने वाले के प्रति होती तो उनको जमीन दे देती और विकास के उदास चेहरे पर हल्की-सी ही सही मुस्कान जरूर ला देती। पर सरकार की संवेदना को मूर्तियां खाती जा रही है। दरअसल, सरकार दिनोंदिन अंसवेदनशील होकर मूर्तियों में ढलती जा रही है।

– देवेंद्रराज सुथार
पता – गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड – 343025

error: Content is protected !!