किसान और किसानी

कल्पित हरित
कल्पित हरित
भारत भले ही कृषि प्रधान देश हो और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था कहलाता हो पर जब उत्तर से दक्षिण तक चाहे राजस्थान , छत्तीसगढ़ ,UP, महाराष्ट्र , तमिलनाडु कोई सा भी राज्य हो अगर हर जगह किसान सडको के रास्ते संघर्ष कर रहा है तो सोचने का विषय है कि दुसरो का पेट पालने के लिए उत्पादन करने वाले का खुद का जीवन इतना कष्टप्रद क्यों होता जा रहा है ?
अगर आंकड़ो की बात की जाए तो देश में जितने किसान 1951 में थे 2011 census के अनुसार उनमे 50 % की कमी आई है | GDP में कृषि का योगदान लगातार घटता जा रहा है | कृषि मजदूरों की संख्या दुगनी हो गयी है | कृषि छोड़कर किसान शहरो में जाकर मजदूरी करना ज्यादा मुनासिब समझ रहे है | देश में 12000 किसान लगभग हर साल खुदखुशी कर लेते है | किसान अपनी आने वाली पीढियों को किसान के रूप में देखना नहीं चाहते और देश में किसानी करना सबसे अलाभप्रद तथा घाटे का सौदा बनता जा रहा है |
कृषि सुधारो को लेकर बनी स्वामीनाथन कमेटी की 2006 में आई रिपोर्ट ये कहती है कि :- किसानो को समर्थन मूल्य लागत का 50% होना चाहिए | किसानो की कमाई कम से कम एक civil Servant के बराबर होनी चाहिए | कृषि उत्पादों के लिए घरेलु तथा अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार होना चाहिए और भारत को एकल बाज़ार व्यवस्था की और बढ़ना चाहिए | किसान technology से लैस होना चाहिए |
स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट 2006 से सरकारी खजाने में धुल फांक रही है और देश अगड़े पिछड़े की राजनीत में व्यस्त है | इस स्थिथि में सड़क के सहारे संघर्ष के अलावा कौन सा रास्ता है जो किसानो को अपना हक़ दिलवा सकता है ?
आज किसानो को लेकर देश के सामने तीन महत्वपूर्ण प्रशन है :-
1. मरता किसान
2. घटता किसान
3. न्यूनतम के लिए लड़ता किसान
मरता किसान :- जब जिन्दगी इतनी कठिन हो जाए कि जीना मुश्किल लगने लगे और मरना आसान रास्ता तो उस परिस्थिति की कल्पना कर पाना मुश्किल है पर किसान की किसी भी खुदखुशी का जिक्र कर लीजिये अंततः कर्ज का बोझ , फसल बर्बादी , उचित दाम न मिलना अर्थात खुदखुशी का कारण आर्थिक ही होता है |आर्थिक रूप से किसानो को मजबूत करने के लिए दो स्तर पर प्रयास आवश्यक है पहला उत्पादन में वृधि और दुसरा उत्पाद को बेचने के लिए बाज़ार की उचित व्यवस्था |
स्वामीनाथन रिपोर्ट के सुझाव के अनुसार हमें एकल बाज़ार व्यवस्था करनी होगी जहाँ किसान अपना सीधे उत्पादको तथा ग्राहकों तक पहुचाये और जो उत्पाद वो उत्पादित कर रहा है उसके लिए कौन से ग्राहक मौजूद है उसकी जानकारी technology के माध्यम से उसे उपलब्ध हो |
ऐसी एक शुरुआत E-NAAM नामक पोर्टल बना कर सरकार द्वारा की गयी थी पर न तो इसका बड़े स्तर पर प्रचार किया गया और न ही किसानो को प्रशिक्षित किया गया | फलत: इसका कोई लाभ किसानो को नहीं हुआ | होना तो ये चाहिए की हर राज्य में एक एकल बाज़ार व्यवस्था हो ताकि वहाँ के छोटे बड़े किसान मजबूर ,असहज किसान के तर्ज पर नहीं बल्कि कुशल व्यापारी की तर्ज पर अपना माल बेच सके |
घटता किसान :- किसान की छवि कुछ इस तरह की गढ़ दी गयी है कि हर किसी के जहन में किसान नाम से एक मजबूर , गरीब ,शोषित व्यक्ति का चेहरा उभर ही आता है तो कैसे आप भावी पीढ़ी से किसानी करने की उम्मीद कर सकते है | जबकि किसान तो उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पादित करता है वह तो अपने आप में एक enterpenure होना चाहिए परन्तु किसानी करना देश में passion ही नहीं है जो ज्यादा पढ़ जाता है वह किसानी करेगा नहीं तो जिसके पास कोई रास्ता बचता नहीं है वह अंत में किसान बनता है और किसानी करता है |
अतः भावी पीढ़ी में कृषि के प्रति रुझान उत्पन्न करना अत्यंत आवश्यक है ताकि TECHNOLOGY से युक्त , मैनेजमेंट में दक्ष अगली पीढ़ी इस कृषि प्रधान देश में कृषि को ऐसे BUSINESS MODEL के रूप में उभार सके जंहा असीम संभावनाए और लाभ हो वरना आज की परिस्थितियो के अनुसार अगर देश में किसानो की संख्या में कमी आती रही तो भविष्य में देश के कृषि प्रधान होने की बात सवालिया घेरे में होगी |
न्यूनतम के लिए लड़ता किसान :- किसान की आय कम से कम से कम इतनी तो होनी चाहिए कि वे अपने जीवन स्तर में सुधार कर सके , अपने बच्चों की शिक्षा , स्वास्थ्य , रहन-सहन आदि पर खर्च कर सके | स्वामीनाथन आयोग कि सिफारिश भी यही है की कम से कम आय एक civil servent के बराबर होनी ही चाहिए | परन्तु वर्तमान में तो हर राज्य में किस्सान सडको पर अपना उत्पाद फ़ेंक फ़ेंक कर प्रदर्शन कर रहे है क्योकि उनको उत्पादों के दाम मिल नहीं पा रहे ,या उत्पादों को खरीदने के लिए ग्राहक नहीं मिल रहे या फिर वे सरकारी समर्थन मूल्य से असंतुष्ट है अर्थात सड़क पर किसान न्यूनतम के लिए लड़ता ,संघर्ष करता नजर आ रहा है |
वास्तव में आज किसनी एक आर्थिक संकट के दौर में है जहां किसान द्वारा उत्पादित उत्पादों का उपयोग कर बड़ी – बड़ी कंपनिया करोडो का मुनाफा कम जाती है पर किसानो को उचित दाम नहीं मिलता | किसानो की हालत खस्ता है पर बिचोलियों के वारे न्यारे है |

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