सुन लो ना बाबा मोरे

सुन लो ना बाबा मोरे ,
करने दो ना मन की मोहे ,
चिड़िया हूँ आँगन की तोरे ,
उड़ जाऊँगी, क्या जाने कौन ठिकाने ।

सुन लो ना बाबा मोरी ,
मटकी ले माँ तो चल देती ,
भाई बहन छोटे मेरे संग कर देती ,
कैसे ढूँढूँ गुड्डा गुड़िया का मेरी ,
छोटा भाई बैठा है गोद में मेरी ,
हल्की कर दो ना माँ के माथे की मटकी ,
मैं भी कर लुंगी मन की पूरी।

सुन लो ना बाबा मोरे ,
माँ तो गई है खेत पर तोरे ,
छोड़ गई है चूल्हा चौका सिर पे मोरे ,
गोल करूँ में रोटी कैसे ,
चूल्हा मुहा धुंआ उड़ावे ,
हल्के कर दो ना माँ के घर से खेत के फेरे ,
मैं भी सुन लूँगी मन की मोरे।

सुन लो ना बाबा मोरे ,
जाने दो ना स्कूल को मोहे ,
ला दो ना एक बस्ता मोहे ,
दो आखर में भी पढ़ लूँगी ,
पढ़ लिख कर कुछ काम करूँगी ,
हाथ थाम तेरा , तेरे साथ चलूँगी ,
जग में रोशन तेरा नाम करुँगी ।

मीनाक्षी माथुर, जयपुर
Written by Minakshi Mathur
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