खवाब तुम्हारा आता है

त्रिवेन्द्र पाठक
जब भी दिल में दर्द उठे, खालीपन आ जाता है,
तेरी ही यादों का एक, मौसम सा छा जाता है,
तुम दुर गए हो मुझसे, एक नया जीवन जीने को,
कैसे हो तुम, ये सवाल फिर यादों में आ जाता है,

कुछ तो बातें पहले वाली अब भी तुम करती होगी,
सोचकर वही सब बातों को, फिर रोना सा आ जाता है,
जब ख्वाब तुम्हारा आता है, हम रात आंखो में बिताते हैं,
फिर धीरे धीरे सुबह को, आंखो पर एक घेरा सा आ जाता है।

तुम हंसी में और खुशी में याद मुझे भी करती होगी,
याद करके भी हंसती होगी,
कोई आशिक था,पूरा पागल सा, याद तुम्हें है भी या नहीं,
पर इश्क की जब भी कोई बात चले, तुम भी थोडा रोती होगी।

मैं महक तुम्हारी अब भी, अपनी यादों में रखता हूं,
मैं बातें तुम्हारी आज भी, अपनी रातों में सोचता हूं,
तुम जीवन के जिन क्षणों में मेरे साथ रही थी कभी,
वो क्षण मेरा जीवन हैं, मैं साथ तुम्हारे रहता हूं।

जब भी दिल में दर्द उठे खालीपन आ जाता है,
फिर तेरी यादों का एक मौसम सा छा जाता है,
तुम चाहे जितना दुर रहो ऐ ‘पाठक’
रोज रात को आंखों में एक ख्वाब तुम्हारा आता है।

त्रिवेन्द्र कुमार ‘पाठक

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