कुछ तो असर मेरी मुहोब्बत का भी रहा होगा,
वर्ना लोग कहा करते थे कि वो तंग दिल था,
और आज तुम बदलने लगे हवाओं का रूख देखकर,
फिजा में बढेगी रौनके तुम पर ये असर देखकर।
कुछ गुस्ताखियां, कुछ शिकवे, कुछ मुहब्बतें,
बहुत कुछ मुझमें भी टूटता होगा,
वो जो आए हैं आज मेरी महफिल में,
बहुत कुछ उनको भी कचोटता होगा।
ये बात और है कि वो सोचते ज्यादा है,
ये बात और है हम समझते ज्यादा हैं
फिर भी जो हश्र मेरी नींदों का हुआ है,
वो भी रात भर कहां सो पाता होगा।
सदियां लग गई मुझे उनको ये बताने में,
नहीं तुम्हारे सिवा कोई और अज़ीज इस जमाने में,
जब जमाने ने मान लिया ‘पाठक’ को आशिक,
कुछ तो ऐतबार उसने भी अपने दिल का किया होगा।
त्रिवेन्द्र कुमार ‘पाठक