क्या बिगाड़ा मौत ने, अमर अटल मरा नहीं,
है सदा ही साथ उसकी, वाणी के तीखे स्वर,
सत्य के लिए जो लड़ा, कभी वो झुका नहीं,
इस लोक के नियम को भी आज उसने पूरा किया,
जिसने जीवन में कभी कोई नियम तोडा नहीं,
है विचारो में वो जिन्दा, अटल था वो मरा नहीं,
जिन्दगी थी जिन्दगी को बोझ भी समझा नहीं,
हर चुनौती का डटकर सामना उसने किया,
अंतिम चुनौती के भी सामने, उसने शीश झुकाया नहीं,
पाठक करता है वंदन उसे, जो खुद के लिया जिया नहीं,
क्या बिगाड़ा मौत ने, अमर अटल मरा नहीं………
त्रिवेन्द्र कुमार “पाठक”