सत्तामद होता ही पतन के लिए है

मोहन थानवी
सत्तामद होता ही पतन के लिए है। पतन कई कारणों से होता है । सत्ता का पतन निरंकुशता के कारण माना जाता है । निरंकुश कभी भी दीर्घ अवधि तक गद्दी पर आसीन नहीं रहे। इतिहास बताता है हिटलर को स्वयं आंखें मूंदनी पड़ी । अभी अधिक समय नहीं हुआ, मीडिया पर अंकुश यानी दमन करने का सिलसिला आपातकाल में भी चला था । तो क्या आपातकाल अभी भी है? तत्कालीन आपातकाल तो कब का इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया । लेकिन आज जो स्थिति बनी है क्या वह चिरकाल रहेगी? यह भी सत्ता मद का का एक उदाहरण है – बाड़मेर में बैठे एक साथी पत्रकार को पत्रकार को पटना की पुलिस आकर ले जाती है गिरफ्तार करके। और आरोप उस कानून के तहत है जिसमें सफाई की कोई गुंजाइश ही नहीं रही। इसे समानता कहते हैं? कुर्सी पर बैठे सत्ता मद में चूर लोगों को सुनना समझना सोचना विचारना चाहिए । और उससे भी बड़ी बात है कि परिवादी के रूप में जिसे सामने लाया जाने का प्रयास हुआ वही कथित परिवादी यह कह रहा है कि उसने इस तरह की कोई न्याय की आवाज ही नहीं उठाई । और तो और जिस पर आरोप है वह साथी पत्रकार यह खम ठोक के कह रहा है कि वह कभी पटना गया ही नहीं । और कथित फरियादी भी कह रहा है कि वह कभी बाड़मेर आया ही नहीं। फिर भी गिरफ्तारी । और ऐसी धारा के साथ जिसमें सुनवाई की भी गुंजाइश सत्ता मद में चूर में सदन में बैठे जनता के हितेषी बनने की खाल ओढ़े लोगों ने रखी नहीं। ऐसा कानून निरंकुशता की पराकाष्ठा की ओर पहला सोपान ही नहीं बल्कि पतन की ओर बढ़ने वाली सीढ़ियों में से एक मान सकते हैं । प्रकरण बाड़मेर में बैठे किसी पत्रकार का पटना की पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने का उदाहरण मात्र है ।
समानता के दावे करके आज असमानता की की असीम गतिविधियां कर अन्याय करने की पराकाष्ठा तक पहुंची है सदन की एकजुटता। सत्ता क्या इमरजेंसी वाले दिनों से भी बदतर दिन जनता को को जनता को दे रही है? सामान्य वर्ग पिछड़े से भी पिछड़े वर्ग में धकेला जा रहा है और इस वर्ग को सरकारी नौकरियों में प्रतिभा होते हुए भी बिछड़ना पड़ रहा है। और तो और पारंपरिक घरेलू उद्योगों में जो परिवार जुटे थे उनमें भी अधिकांश सामान्य वर्ग के थे जिनके पारंपरिक काम धंधे बीते दशकों में चौपट कर दिए गए।
विश्व बाजार की होड़ में भारतीय सामाजिक व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है इसमें कोई शक नहीं। और ऊपर से जले पर नमक छिड़कने का काम आरक्षण नीति ने कर कर दिया। घाव पर एक और घाव करने का काम ऐसी न्याय व्यवस्था ने कर दिया कि सामान्य वर्ग की कोई बात सफाई में नहीं सुनी जाएगी। पहले गिरफ्तारी । और इससे अधिक आपातकाल क्या यह होगा? क्या सामान्य वर्ग को सड़क पर चलने के लिए भी कर चुकाना पड़ेगा? अपने लिए घर बना कर कर रहने की सुविधा भी उससे छीन ली ली जाएगी? जैसा कि समस्त भारतवासी कश्मीर में अपनी संपत्ति नहीं बना सकते जबकि कश्मीर के लोग भारत में कहीं भी अपनी संपत्ति बना सकते हैं ! यह ऐसी व्यवस्था है जैसे विदेश में जाकर एक भारतीय अपने नाम से दुकान मकान नहीं खरीद सकता । यानी कश्मीर भारतवासी के लिए विदेश है । ऐसी ही कुछ और विसंगतियां सामान्य वर्ग के भारतीयों को उनकी क्षमताओं से विलग कर रही है । यह सत्ता में बैठे लोगों को भलीभांति जानना समझना चाहिए। वर्ग विशेष के भी लोग भारतीय हैं किंतु उनके उत्थान के लिए किसी और को ना केवल उत्थान से वंचित करना बल्कि उसकी जीवन शैली को भी प्रभावित करना उचित नहीं कहा जा सकता। आपातकाल भी अधिक नहीं चला था । ऐसी स्थितियां भी जनता अधिक नहीं चलने देगी। और वह भी इस परिस्थिति में कि सदन में बैठे लोगों को आने वाले कुछ महीनों में ही वोट मांगने जनता के बीच पहुंचना है । अब देखना यह है इमरजेंसी में भी जो निरंकुशता मीडिया पर अंकुश ना लगा सकी, उसका दमन न कर सकी वह निरंकुशता की प्रवृत्ति क्या अब यानी उस आपातकाल के 42- 43 साल के बाद सामान्य वर्ग की जनता और आधुनिक सुविधाओं से संपन्न मीडिया कर्मियों पर ऐसे दमन के प्रकरणों को चलाकर क्या समग्र भारतीय जनता में अपनी छवि समानता के हितेषी और विकास पथ के गामी के रूप में बनाए रख सकेगी? यह केवल सत्ता में बैठे लोगों को ही नहीं सोचना है बल्कि सत्ता में बैठने की तैयारी करने वाले लोगों को भी इस बिंदु पर गहन विचार करने की आवश्यकता है। पत्रकार एवं आमजन स्वतंत्र है और रहेगा । पत्रकारिता और सामान्य वर्ग की जनता पर आंच लाने वाले कभी भी सफल नहीं हो सकते क्योंकि यह वर्ग भी समानता का हकदार है तथा पत्रकारिता एक मिशन है । आमजन और इस मिशन से जुड़ा हर निष्ठावान ऐसी निरंकुशता की भर्त्सना करता है।
– मोहन थानवी
स्वतंत्र पत्रकार 82 कॉलोनी बीकानेर 334001 मोबाइल 9460 001 255

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