कैसे पाये छुटकारा जान लेवा तनाव से ?

डा.जे.के.गर्ग
तनाव ना केवल वर्तमान को खत्म कर देता है बल्कि आने वाले कल पर भी बुरा असर डालता है |तनाव पर काबू पाने से पहिले इसे समझना होगा | हमने तनाव पैदा होने वाले कारणों को जान लिया तो मानों आधी जंग जीत गये | तनाव को दूर करना एक तकनीक है | अगर हम कुछ खास बातों पर अमल करेगें तो स्ट्रेस (तनाव) को आसानी से बीट कर सकते हैं |तनाव का मतलब है अनियंत्रित मन, तनाव का अर्थ है असंतुलित मन, तनाव का अर्थ अनियत्रित भावनात्मक अवस्था |
तनाव यानि अनियंत्रित मन,तनाव का अर्थ है असंतुलित मन,अनियंत्रित भावात्मक अवस्था,दिमाग पर अनियंत्रित दबाव (स्ट्रेस) ,निराशा एवं हताशा साथ ही बोद्धिक क्षमता एवं मानसिक शांति की शिथलता |

तनाव के दुष्परिणाम :—
तनाव का प्रभाव बचपन से म्रत्यु तक बना रहता है | शोधकर्ताओं का मानना है कि “ अगर कोइ गर्भवती स्त्री तनाव, भय या चिंता ग्रस्त रहती है तो उसके गर्भ से जन्म लेने वाला शिशु भी जन्म से ही चिडचिडे स्वभाव वाला होगा, वह आवेश ग्रस्त भी होगा | तनावग्रस्त आदमी की स्मरण शक्ती भी कमजोर होती जायेगी, वो भुलक्कड भाईसाहिब या भुलक्कड बहिनज़ी बन जायेगें | तनावग्रस्त व्यक्ति हकलाकर बोलने लगता है ,आदमी के मन की शांति कुंठित होती है, वहीं दूसरी तरफ उसकी आखों की देखने की क्षमता भी कमजोर होती जाती है,घबराहट उसकी आदत बन जाती है, उसके हाथ-पावों में सूजन तक आ जाती है, ह्रदय की धडकन कम हो जाती है, यहाँ तक उसकी आतें भी सिकुड जाती है और पाचन तन्त्र खराब हो जाता है, डाक्टर तो यह भी कहते हैं कि उसके गुर्दे भी ख़राब हो सकते हैं |

डा. जे.के.गर्ग
कुछ शोधकर्ताओं ने तो यहाँ तक कहा है कि तनाव से पुरुष अपना पोरुष –सामर्थ्य खो कर नपुंसक तक बन जाता है |तनाव ग्रस्त आदमी अपने अंतर्मन को जीते जी ही मार डालता है |तनावग्रस्त आदमी अपनी मानसिक शांति और मानसिक स्थिरता खो देता है, उसका जीवन दुखी, चिंताग्रस्त बन जाता है, खुशीयाँ उससे दूर हो जाती है |

तनाव के मुख्य कारण :-
निसंदेह तनाव क्रोध, चिंता, भय, भ्रम, वहम एवं अतिमहत्वाकांक्षा के कारण होता है |“क्या होगा”, “अगर यह हुआ तो” जैसे प्रश्न भी तनाव उत्पन्न करने के कारक होते हैं | शोध से ज्ञात हुआ है कि नकारात्मक सोच भी तनाव उत्पन्न करती है |

क्रोध बिना मन स्वर्ग:– तनाव का दूसरा कारण है क्रोध; सबसे पहले अपने दिमाग को ठन्डा करो,ठन्डा दिमाग कभी कटु/कर्कश वाणी नहीं बोलता और आखं को लाल नहीं करता है, ऐसे आदमी का स्वर्ग हमेशा सुरक्षित रहता है | क्रोध अंगारा है | आप शांति के सागर बने, तब क्रोध आप पर कभी हावी नहीं हो पायेगा |

मन की नपुंसकता है भय :- भय जहाँ तनाव के उत्पन्न होने का कारण बनता है वहीं दूसरी तरफ भय रोग, बुढ़ापा , स्म्रति- लोप और पलायन प्रवर्ती तक का कारण भी बनता है | भय कमजोर मन का परिणाम है वहीं आत्मविश्वास मजबूत मन का परिचायक है | मन को मजबूत बनाये , भय अपने आप निकल जायेगा और तनाव भी आपसे कोसों दूर रहेगा | किसी भी बात के बारे में जरूरत से ज्यादा सोचना भी भय को बढ़ाता है, अत: ज्यादा चिन्ता करना भी छोड़ें | भय मुक्त रहें और| हर हाल में मस्त रहने की कोशिश करें |

तनाव की जननी है चिन्ता:-चिंता जीवन की सबसे बड़ी नकारात्मकता है | हर नकारात्मकता तनाव रूपी गड्ढे को और ज्यादा गहरा बनाती है | तनाव एवं चिंता को कुछ लोग पति-पत्नी के समान भी मानते है, दोनों सदेव साथ-साथ ही रहते हैं, याद रक्खें कि चिंता का नतीजा तनाव होता है वहीं दुसरी तरफ चिंता ही तनाव की जननी है | तनाव से मुक्त होने के लिए आप चिंता से मुक्त हों | आप चिंता नहीं चिन्तन करें, चिन्तन इस बात का करें कि चिंता क्या है ? चिंता किस लिए है ? चिंता से कैसे बाहर निकले ? याद रक्खें ‘दुःखदायी चिन्तन चिंता बन जाता है वहीं सुखदायी चिन्तन चिंता का समाधान खोज लेता है” |

भ्रम:–भ्रम के चलते स्वयं की अन्यमनस्कसी स्थिती रहती है, जहाँ भ्रम या बहम का मन मे आ जाता उसी क्षण आप मे तनाव का प्रवेश भी हो जाता है | (यह भी सर्वविदित है किभ्रम या बहम ला इलाज यानि इसका कोई भी कहीं पर भी उपचार नहीं है) अपने मन को स्थिर और शांत बनाये और भ्रम एवं बहम को मन से निकाल दें, मन का वहम खत्म तो तनाव भी खत्म |

अतिमहत्वाकांक्षा लाती है भय:—-अतिमहत्वाकांक्षा आपके मन मे व्यर्थ की लालसाओं को जन्म देती है | यदि सम्राट धर्तराष्ट्र अपनी अतिमहत्वाकांक्षा पर सयंम रखने में समर्थ हो जाते तो शायद महाभारत का युद्ध हुआ ही न होता | अतिमहत्वाकांक्षा से अहंकार का जन्म होता है | अहंकार से क्रोध उत्त्पन होता है, क्रोध से स्म्रति एवं विवेक समाप्त हो जाते हैं जिसका परिणाम है– ‘तनाव’ | जरूरत से ज्यादा भोंतिक सुख हमारे चापलूस दुश्मन हुआ करते हैं | हर एक को इनका विवेक पूर्वक और संभलकर ही उपयोग करना चाहिये |

तनाव पर काबू पाने के तरीके:——

रिलेक्सेशन एवं ध्यान:– जब भी आप स्वयं को मानसिक या शारीरिक तनाव मे देखें , तुरंत शांत भाव से धैर्यपूर्वक बैठ जायें | शरीर को ढीला छोड़ने से शारीरिक तनाव दूर होता है | आप इसको बैठ कर या लेटकर कर सकते हैं | मन को शांत कर कुछ समय तक ध्यान मुद्रा में बैठ जायें, मेडीटेशन करें, शांत भाव से कुछ समय तक अपनी आती-जाती स्वांस का अनुभव करें, अपने अंतर्मन में शांति, आनंद और खुशी का अनुभव विकसित करते चले जायें | धीमे-धीमे आप अपने आप को तनाव मुक्त्त पायेगें |स्वयं के प्रति सकारात्मकता का नजरिया अपनाएं, नकारात्मकता से खुद को कोसों दूर रक्खें |

स्वयं को व्यस्त रक्खें :—फालतू बैठा हुआ आदमी उल्टा-सुलटा ही सोचता रहता है | परिणामत: हमारे यही अनर्गल विचार हमारे तनाव के कारण बन जाते हैं | इनसे बचने का एक ही रास्ता है अपने आप को हमेशा व्यस्त रखना | अपने आप को व्यस्त रखने हेतु सत्साहित्य पढ़े, ज्ञान अर्जन करें, रोज कुछ ना कुछ नया सीखें, समाज-सेवा करें, अपंगो-असहाय की मदद करें, लेखन करें, कोई न कोई हॉबी अपनाएँ, मित्रों से स्वस्थ और लाभदायक वार्तालाप करें आदि-आदि | निश्चय ही, खुद को व्यस्त रखना दुखों एवं तनावों से छुटकारा पाने का सीधा-साधा और सरल तरीका है |याद रक्खें कि निक्कमापन भी तनाव उत्त्पन्न करने का एक प्रमुख कारण है |

प्रक्रति के सानिध्य में जीयें :—प्रक्रति की अपनी एक प्रबन्धन शैली है | वह अपने तरीके से विश्व का, हम सब प्राणीयों (मानव, पशु-पक्षी,वनस्पति आदि) का प्रबन्धन सुचारू रूप से करती है |याद रक्खें प्रक्रति और परमपिता परमात्मा की व्यवस्थाओं में विश्वास रखने वाला व्यक्ति भय,चिंता, भ्रम , क्रोध, ईगो एवं तनाव की बाँहों मे नहीं जकड़ता है |यह भी स्वीकार करें कि तनाव,क्रोध, भय, भ्रम और चिंता “आक्टोपस “ की मजबूत भुजाएँ हें |

खुद पर हालात को हावी नहीं होने दें:–दुःख दायी बातों एवं घटनाओं को सहजता से स्वीकार करने की मानसिकता को अपने मन में विकसित करें | याद रक्खें जीवन में अनुकूल-प्रतिकूल परीस्थितियां तो आती-जाती ही हैं | जैसे मोसम बदलते रहते हैं वैसे ही परीस्थितियां भी बदलती रहती है, आप प्रक्रति के परिवर्तनमूलक स्वभाव को आत्मसात कर उसे मन से स्वीकार करें |हमेशा याद रक्खें कि जहाँ एक तरफ परीस्थतियों का विपरीत होना “ पार्ट ऑफ़ लाइफ है वहीं दूसरी तरफ परीस्थितियों को खुद पर हावी नहीं होने देना “आर्ट ऑफ़ लाइफ” है | आपका अधिकारी आप को ऐसा काम करने को कहे जो आप करना नहीं चाहते या नहीं कर सकते तो उस वक्त साफ-साफ शब्दों में“ ना “कह दें |अपनी भावनाओं/ विचारों को मन में रखकर मन ही मन में कुढ़ने के बजाय अपनी भावना सामने वाले को स्पष्ट शब्धों में बता दें| अगर किसी दोस्त, रिस्तेदार एवं परिचित का साथ आपके भीतर तनाव पैदा करता है तो अविलम्ब ऐसे व्यक्तिओं से दूर चलें जायें, उनसे निकटता नहीं बनाएं | अपने आपको समय और परीस्थिती के अनुसार बदले, समझोतावादी सोच अपनाये, दूसरों के विचारों का भी सम्मान करें |

खीझना और बात बात पर झल्लाना छोड़ें:- खींझ आपके चिडचिडेपन को ही बढ़ायेगी | आपके चिडचिडेपन की आदत से परेशान होकर लोग आपको पसंद नहीं करेगें, आपसे दूर-दूर रहेगें जिससे आप फालतू ही क्रोधित हो तनावग्रस्त हो जायेगें |आप इस तथ्य को स्वीकार करें कि” गलती होना मानवीय स्वभाव है “ हर छोटी-मोटी बातों एवं गलतीयों पर ध्यान न दें, उन्हें इग्नोर करें अन्यथा इन्हीं के भ्रम जाल उलझते जायगें | सदेव सकारात्मक रुख अपनाते हुए केवल उन्हीं बातों पर ध्यान दें जिनके परिणाम सार्थक एवं शांतिमूलक हों |

शांतिपूर्ण जीवन जीयें, जल्दबाजी न करें:– जल्दबाजी तनाव का कारण तो बनता ही है और साधारणतया काम पूरा होने मे अधिक समय भी लगता है | शांति से जीवन व्यापन की कला सर्वश्रेष्ट गुण है | आप सुबह शान्तिपूर्वक उठें, शांति से स्नान करें, वस्त्र पहनें एवं शान्ति से ही नास्ता तथा भोजन करें |अपने स्वजनों,मित्रों, सहकर्मियों एवं अन्य सभी परिचित–अपरिचित के साथ धैर्य तथा शान्तिपूर्वक व्यवहार करें| दुर्घटना उन्हीं के साथ घटा करती है जो ज्यादा जल्दबाजी दिखाते हैं क्योंकि रास्ता वो ही पार करते हैं जो आहिस्ता-आहिस्ता चलते हैं, ठोकर खाकर वही गिरते हैं जो तेज दोड़नें की जल्दबाजी करते हैं

तनाव मुक्ति के लिये इन्हें भी आजमायें:–

जीवन में सोच को दिनचर्या का हिस्सा बनायें | हर क्षण प्रसन्न रहना सीखें, तन भले ही मिट्टी से बना है किन्तु अपने मन को सदेव अलमस्त ही रक्खें | सांसारिक जाति-पाति को भूल कर “उत्सव को अपनी जाति बनाएँ एवं आनन्द को अपना गोत्र बनायें | हमेशा हंसते-मुस्कुरातें रहें, खुद मुस्कराएँ और दूसरों को भी मुस्कराहट दें एवं हर एक का अभिवादन मुस्कराहट के साथ करें | जिस वस्तु या परिस्थीती को आप बदल नहीं सकते हैं उसको अपने मन मुताबिक बदलने की कोशिश नहीं करें, उसे उसी रूप में स्वीकार कर लें जिस रूप में वह है | अपनी मन की भावनाओं-व्यथाओं को अपने घनिष्ट इस्ट-मित्रों के साथ साँझा करें, दुःख-दर्द, सुख को परस्पर बाटें, याद रक्खें कि बाटने से दुःख आधा हो जाता है वहीं सुख और खुशी दुगुनी हो जाती है |भूल जाओ और माफ़ करों की आदत डालें |नियमित रूप से घुमने जायें | एक्सरसाइज-कसरत, योगा करें | इनडोर या आउटडोर गेम खेलें |थोड़ा समय अपने खुद के लिये निकाले, रिलेक्ष करें, संगीत सुने, कॉमेडी के नाटक, चलचित्र देखें, बागवानी करें और अपने परिजनों से म्रदुल वार्तालाप करें, बच्चों के साथ मटरगश्ती करें | बीती –बीसरी बातों को याद नहीं करें, भूतकाल का चिन्तन नहीं करें और ना ही भविष्य की व्यर्थ की चिंताकरें | संतोषी सदा सुखी के मंत्र की अनुपालना करें |हमेशा अच्छा देखें, अच्छा सुने, अच्छा बोलें, अच्छा कार्य करें और अच्छा सोचें |

error: Content is protected !!