लगता है खो सा गया हूँ कही मैं
वही तो नहीं हाल दिल का जो था पहले
वही धुन फिर से गुनगुनाने लगा हूँ कही मैं
ऐसा अजब हाल पहले हुआ था
कि जीते हुए भी हार सा गया था
लगता है मौसम वही फिर है आया
उसी रुत में हूँ मैं लौट आया
वही गीत मुझे फिर से रिझाने लगे है
जिन्हें था मैं पीछे बहुत छोड़ आया
ये दिल फिर से जीने लगा है
लगता है खुद को खोने लगा हूँ कही मैं
ये बारिश का मौसम ये मुस्कराहट उसकी
ये उसका मचलना जैसे की बादल
बहुत कुछ फिर से होना लगा है
लगता है फिर से जीने लगा हूँ कही मैं
त्रिवेन्द्र कुमार पाठक
राष्ट्रीय महासचिव (युवा)
अखिल भारतीय ब्राह्मण परिषद्
भारत।
9782008304