प्रीत

यहा प्रीत परवान चढ़ी है ,
वहा बर्फ का धीरे गलना ।
पायल को बजने से रोके ,
दबे पाँव तेरा धीरे चलना ।
मुझे अखरता है ये सब ,
साँझ का धीरे धीरे ढलना ।
लगता है मेरे अरमानो को ,
पड़ेगा धीरे धीरे जलना ।
यहा प्रीत परवान चढ़ी है ,
वहा बर्फ का धीरे गलना ।
नंगे पैर सम्भल के चलना,
चुभ ना जाये तीखा कांटा ।
तेरे वहा तो ऊफ निकलेगा,
मेरे यंहा दिल पर झन्नाटा ।
तेरी ऊफ और मेरी आह से,
टूट ना जाये ये सन्नाटा ।
नंगे पैर सम्भल के चलना,
चुभ ना जाये तीखा कांटा ।

-महेन्द्र सिंह

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