बाबरी मस्जिद के विध्वंस से ठीक पांच माह पहले..

तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने कहा था.. मुझे मुसलमानों का तन और धन नहीं, मन चाहिए
27 साल पहले उनसे हुई एक मुलाकात की याद , अब सवाल उठा रही है
जुलाई का महीना था। साल 1992। सर्वधर्म एकता समिति के अध्यक्ष मौहम्मद शाहिद खान ने 20 जुलाई से पूर्व कुछ प्रयास करके प्रधानमंत्री कार्यालय से तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंम्हा राव से मुलाकात का वक्त ले लिया था। देश में साम्प्रदायिक माहौल बन रहा था। हिंदू संगठनों में अयोध्या में कार सेवा किए जाने की योजना बन रही थी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने सुबह 11 बजे का समय दिया था सिर्फ आधे घंटे के लिए। जिन लोगों का मुस्लिम प्रतिनिधीमंडल के रुप में प्रधानमंत्री को मिलना था उनमें अजमेर से ख्वाजा मोइनुददीन चिश्ती की दरगाह के खादिम, लेखक और एडवोकेट सैयद सलीम चिश्ती, ऑल इंडिया इमाम संगठन के अध्यक्ष मौलाना जमील अहमद इलियासी, कश्मीरी गेट शिया मस्जिद के पेश इमाम, एकता समिति के मौहम्मद शाहिद खान, अजमेर से प्रकाशित इत्तेहाद इंटरनेशनल उर्दू समाचार पत्र के सहसंपादक के रुप में मैं $खाकसार मुजफ्फर अली और दो अन्य इमाम शामिल थे। तीन चार गाडिय़ों में हमारा काफिला नई दिल्ली के वेस्टर्न कोर्ट से सुबह रवाना हुआ और दस बजे तक सात रेसकोर्स रोड पहुँच गया।

मुजफ्फर अली
प्रधानमंत्री निवास में एंट्री ली। लकड़ी के बने बड़े से कैबिन टाईप कमरे में चैकिंग हुई, हमारे नाम वगैरह लिखे गए। आधा घंटा वहीं बीत गया। फिर सुरक्षा अधिकारियों ने इशारा किया और मैटल डिटेक्टर गेट से गुजरकर एक गैलरी से होते हुए निकले तो सामने बाहर मखमली घास का एक बहुत बड़ा लॉन नजर आया। लॉन के बीच सफेद रंग की ब्रिटिश वास्तुकला वाली एक खूबसूरत इमारत दिखी। वही प्रधानमंत्री का आवास था। घास के लॉन से गुजर कर इमारत में दाखिल हुए। हॉल नुमा कमरें में बड़ी सी अण्डाकार मेज के चारों ओर आरामदायक कुसियाँ थी जहाँ हमें बिठा दिया गया। मेज के सिरे पर एक बड़ी कुर्सी थी जिसपर प्रधानमंत्री को बैठना था। सभी खामोशी से हॉलनुमा कमरे से और अंदर की ओर जाने के लिए बने एक बंद दरवाजे को देख रहे थे। सफारी सूट पहने सुरक्षा अधिकारियों में हलचल हुई और तुरंत दरवाजा खुला दो सुरक्षा अधिकारी दौड़ कर निकले और बड़ी कुर्सी को पीछे खींचा तब तक कंधें पर क्रीम कलर का शॉल, जाकिट पहनें प्रधानमंत्री पीवी नरसिंम्हा राव अंदर आ चुके थे, सुरक्षा अधिकारी पीछे हट गए और पीवी नरसिंम्हा राव जो गंभीर मुद्रा में कमरे में दाखिल हुए थे अब चेहरे पर मुस्कान लिए सभी को देखते हुए सलाम करते हुए कुर्सी पर बैठ गए। हम लोग भी प्रधानमंत्री के सम्मान में उठ खड़े हुए थे, सभी बैठ गए और फिर शुरु हुआ बातों सिलसिला। पीवी नरसिंम्हा राव मौलाना जमील इलियासी से वाकिफ थे इसलिए जमील इलयासी ने ही सबका परिचय दिया और फिर देश में संप्रदायिक तनाव को कम करने और देश में भाईचारा खत्म ना हो इसके लिए प्रधानमंत्री के प्रयास की तारीफ भी की और आगे कदम उठाने को कहा और अयोध्या में बाबरी मस्जिद की सुरक्षा करने की मांग की। अजमेर से एडवोकेट सैयद सलीम चिश्ती ने प्रधानमंत्री राव से आग्रह किया कि अगर वो अजमेर आकर ख्वाजा की दरगाह से भाईचारे का पै$गाम दें तो भी मौजूदा तनाव कम हो सकता है। सबसे बड़ी बात मुसलमानों के दिल में डर खत्म हो सकता है कि बाबरी मस्जिद सुरक्षित रहेगी और मुस्लिम वर्ग को भी तसल्ली मिलेगी। इस बीच किसी इमाम ने बीच में बोल दिया कि आप अगर साथ दे दें तो मुसलमान तन मन धन से आपके साथ होगा। पीवी नरसिंम्हा राव गंभीरता पूर्वक नज़रें नीची कर सब सुनते रहे, जब सब चुप हो गए तो राव बोले कि आप लोगों को और देश के मुसलमानों को किसी तरह की फिक्र करने की जरुरत नहीं हैं, सरकार बाबरी मस्जिद की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्व है। यूपी गर्वमेंट से संपर्क बना हुआ है। दूसरी बात यह है कि मुझे आप लोगों का साथ चाहिए, सरकार को मुसलमानों के तन और धन की जरुरत नहीं सिर्फ मन का साथ चाहिए। इतने में नाश्ते की प्लेटें टेबल पर आ जाती हैं। प्रधानमंत्री सबकों नाश्ता करने का इशारा करते हैं और स्वंय ऑटोग्राफ देने में मश्गूल हो जाते हैं। अंत में मौलान इलियासी दुआ करते है कि देश में अमन चैन कायम रहे, पीवी नरसिंम्हा राव को लंबी उम्र मिले ,पीवी नरसिंम्हा राव भी दुआ के लिए हाथ उठाकर सबका साथ देते हैं और मीटिंग खत्म हो जाती है।
आज 27 साल बाद यह वाक्या लिखने का उद्देश्य कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद की 12 जुलाई 2019 को लॉंच हुई नई किताब- विज़ीबल मुस्लिम अनविज़ीबल सिटीज़न: अंडरस्टेंडिंग इस्लाम इन इंडियन डेमोक्रेसी- के संदर्भ में है जिसमें उन्होने खुलासा किया है कि छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समय सलमान खुर्शीद ने राजेश पायलेट को पीवी नरसिम्हा राव से बात करने को कहा था और राजेश पायलेट ने जब राव से संपर्क किया तो पता चला राव साहब सो रहे हैं।
सवाल उठता है कि क्या नरसिंम्हा राव ने पहले से ही मन बना रखा था कि करना क्या है। उन्हे सिर्फ उनके निर्णय में मुसलमानों के मन का साथ चाहिए था। या उन्होने चतुर राजनीति का खेल खेला कि मुस्लिम प्रतिनिधीमंडल से कहते रहे बाबरी मस्जिद की सुरक्षा सरकार की प्रतिबद्वता है और ऐन समय पर सो गए और जब सारा काम हो गया तो जाग गए और कहा कि बाबरी मस्जिद का फिर निर्माण होगा जो कि वो जानते थे कि ऐसा नहीं होना है।

– मुजफ्फर अली

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