रंगो की मौजूदगी से बदलता स्वभाव

अंबिका हेडा
रंगो की मोजूदगी से
मेरा स्वभाव बदलने लगता है ……..
देख अलग अलग जगहो पर
मन का भाव बदलने लगता है ।

फागुन के मस्त महीने में जब
रंगो से बादल सजता हैं ……
उम्मीद नयी ले आता है
मन को अच्छा सा लगता है ……
पिचकारी की तेज़ धार से
मानो मन का मैल सभी धूल जाता है ….
लाल हरे नीले रंगो से मन का
कालूस भी छिप जाता है ।
रंगो की मौजूदगी से
मेरा स्वभाव बदलने लगता है ……….
होली के रंगो से मन में
प्यार का फूल सा खिलने लगता है ।

दिवाली पर आग़न में जब
रंगोली सजने लगती है ……..
आग़न पर बिखरे रंगो में
माँ लक्ष्मी के चरणो की
परछाईं दिखने लगती है।
उम्मीद नयी बंध जाती है
आशा की किरणे मन में जगती है ……
दियों की जगमग से रिश्तों में
रोशनी नयी दिखने लगती है …….
रंगोली की ख़ूबसूरती देख
तन में फुर्ती सी जगने लगती है …….

रंगो की मोजूदगी मेरा
स्वभाव बदलने लगती है ………
बोर्डर पर तैनात सिपाही जोह
मेरे देश की रक्षा करता है …..
दुश्मनों के सामने निडर , बैखोफ ,सीना
तान खड़ा जो रहता है …………
हम सब को बचाने की ख़ातिर
अपनी जान न्योछावर करता हैं ……..
उस वीर का लाल लहू
जब माटी से जाकर मिलता है …….
भारत माँ की आँखो से भी सच मानो
आँसू टपकने लगता है ……….

तिरंगे के रंगो मे देख उस सपूत को
मेरा स्वभाव बदलने लगता है ………
मेरे मन के अन्दर बैठा चण्डी का
रूप भी जगने लगता है ……….
मन करता है तलवार पकड़ हाँथों में
दुश्मन का सर धड़ से अलग कर दूँ
भारत माँ के वीर सपूत की शहादत का
बदला अपने हाथो से में ख़ुद ले लू ………
अपने हाथो से में ख़ुद ले लू ……
जय भारत …..जय हिन्द

अम्बिका हेड़ा

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