किसी को विश्वास नही है किसी पर

हास्य व्यंग्य
कुछ लोग देश में अविश्वास का वातावरण बनाने में लगे हुए है. मसलन बैंकवालों को ही लें. लोगों ने उन पर भरपूर विश्वास करके अपनी गाढी कमाई का पैसा उनके पास जमा किया हुआ है ताकि आडे वक्त पर काम आएं. जनता तो इन पर इतना भरोसा करती है और इन बैंक वालों की इतनी जुर्रत कि यह लोग इसी जनता पर बिलकुल भरोसा नही करते. इसका प्रमाण है कि यह लोग अपने बैंक काउंटर पर रखें बॉलपेन तक को रस्सी से बांध कर रखते है. देखा आपने ?

शिव शंकर गोयल
अकेले बैंकवालों को ही क्या दोष देना ? अब आप अस्पतालों के सामने खुले मेडिकल स्टोर को देखें. काउंटर पर रखी छोटीसी कैंची तक को रस्सी से बांध कर रखते है. अरे भाई ! इतना खुल्लमखुल्ला तो पत्नियां भी अपने पति को बांधकर नही रखती. हालांकि इतना जरूर करती है, मसलन सुबह की सैर पर जाओ और जरा जल्दी लौट आओ तो कहेगी आज जल्दी कैसे ? और देर से आओ तो ऊलाहना देगी कि इतनी देर कहां लगादी ? आजाद मुल्क में इतनी भी आजादी नही. इससे तो अकेले ही अच्छा है.
आजकल “फोटोस्टेट” अर्थात “जीरोक्स” करने वाले भी रूस्तम हो रहे है. अपने काउंटर पर रखे स्ट्रेपल तक को, पतली ही सही पर, रस्सी से बांध कर रखते है. क्या पता कौन लेजाय ? अरे भाई ! ग्राहक आयेगा तो फोटोस्टेट कराके अपने पेपर ले जायगा, कौन स्ट्रेपलर लेने बैठा है ? किसे फुर्सत है ? लेकिन क्या करें ? चारों तरफ अविश्वास का माहौल फैला हुआ है.
कुछ लोग सार्वजनिक प्याऊ अथवा वाटर कूलर लगाते है. दोनों ही जगह वहां रखें गिलास को वह लोग जंजीर से बांधकर रखते है जैसे कभी जेल में कैदियों को और पागलखाने में मानसिक रोगियों को रखते थे. यहां भी किसी को किसी पर विश्वास नही है.
मजे की बात देखिये कि कोर्ट कचहरियों के बरामदों, अहातों में पेडों के नीचे रखी कुर्सियों को भी वकील लोग बांधकर रखते है. इन्हें कोई पूछ सकता है कि कभी कुर्सी भी किसी से बंधी है ? पिछले दिनों ही आपने दिल्ली में देखा “आया है सो जायगा, राजा रंक फकीर. एक सिंहासन चढ चले, एक बंध चले जंजीर.” वाली बात हुई. वकील साहब ! आमजनता तो भरोसा कर सब कुछ आप पर छोड देती है और एक आप है कि कुर्सी तक को बांधकर रखते है. मुव्वकिलों पर ईतना अविश्वास ? हद होगई !
इतना ही नही बडी 2 कोठियों वाले अपने कुत्तों को बांधकर रखते है. ऊपर से गेट पर एक बोर्ड और लगा देते है “कुत्तों से सावधान” अरे भाई ! जनता को क्या आगाह करते हो ? जनता तो आप पर, सरकार पर, सब पर, भरोसा करती है लेकिन आपमें से ही कुछ है जो बैंकों में जमा धन को लेकर बाहर भाग जाते है. कहां तो बैंकवालों और सरकार को इस धन की चौकसी करनी चाहिए और कहां चौकसी ही इस धन को ले उडा.
पहले एक सरकार थी. अपने परिवार का शासन बनाये रखते हुए उसने नारा दिया “गरीबी हटाओ, देश बचाओ.” फिर किसी ने दूसरा नारा दिया “इंडिया शाइनिंग”. दोनों का नतीजा शून्य. फिर नय़े शासन में दूसरें नारें लगने लगे “सबका साथ, सबका विकास” जिसकी प्रतिक्रिया में सैकडों टिप्पणियां समाचार पत्रों में छप रही है. उन्ही में से एक निम्नानुसार है :-
“लडके के लालच में पांच-पांच लडकियां होगई. नोटबंदी,जीएसटी,महंगाई, बेरोजगारी और मंदी लेकिन अभी तक विकास का जंम नही हुआ.” अर्थात किसी को विश्वास नही है.

शिव शंकर गोयल
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