सऊदी अरब और ईरान के बीच संभावित जंग में अपांयर बन सकता है भारत

इस समय देश के भीतर हिंदुत्व विचारधारा को मजबूती देने का प्रयास हर स्तर पर किया जा रहा है। लेकिन इस मिशन पर लगे लोग सीधे तौर पर मुस्लिम विरोधी होने से बच रहे हैं। इस विरोधाभासी माहौल के बीच देश के बाहर की दुनिया में दो बड़े मुस्लिम देशों के बीच यदि जंग होती है तो भारत के पास दोनों देशों के बीच सुलह या शांति कराने का अवसर मिल रहा है। सऊदी अरब और ईरान के बीच एक बार फिर तनाव का माहौल है। मध्य एशिया की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ यह आकलन कर रहे हैं कि यदि ईरान और सऊदी अरब के बीच जंग छिड़ी तो दुनिया को कितना नुकसान होगा। दोनों इस्लामी देश होते हुए शिया और सुन्नी विचारधारा में बंटे हैं , सऊदी अरब और ईरान पारंपरिक रुप से एक दूसरे के प्रतिद्वंदी देश रहे हैं।

मुजफ्फर अली
दोनों हर तरह से ताकतवर हैं। लेकिन दोनों देशों के साथ भारत के संबंध शुरु से अच्छे रहे हैं। कांग्रेस शासन के बाद भाजपा शासन में देश की विदेश नीति में सऊदी अरब और ईरान के साथ कोई बदलाव नहीं आया है। भारत ने दोनों देशों के समान दुश्मन समझे जाने वाले इस्रायल से संबंध भी मजबूत किए लेकिन जब भी मौका मिला भारत ने इस्रायल को दरकिनार कर सऊदी अरब या ईरान का साथ दिया है। सऊदी अरब का ईरान पर आरोप है कि ईरान मध्य एशिया में अपनी धार्मिक विचारधारा फैला रहा है साथ ही सऊदी अरब के प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाने में लगा है ताकि सऊदी अरब को आर्थिक हानि पहुंचती रहे। वहीं ईरान का आरोप है कि सऊदी अरब मुस्लिम दुनिया का नेता देश बनकर अमेरिका के हाथों कठपुतली बना हुआ है और ईरान के खिलाफ अमेरिका नीति का समर्थन करता है।
शिया-सुन्नी में भेद –
दरअसल दिखने में दोनों इस्लामी देश हैं लेकिन इनके बीच धार्मिक विचारधारा की दीवार खिचीं हुई है। सऊदी अरब सुन्नी मुस्लिम विचारधारा वाला देश है तो ईरान शिया विचारधारा वाला देश। इस्लामी दुनिया शिया और सुन्नी दो विचारधाराओं में बंटी है। आठवीं सदी में पैगबंर मुहम्मद के बाद इस्लाम के असल उत्तराधिकारी कौन के सवाल पर दो गुट बन गए थे। एक गुट रिश्ते को प्राथमिकता देते हुए पैगंबर के दामाद और चचेरे भाई हजरत अली को इस्लाम धर्म का सही उत्तराधिकार और पैगबंर मुहम्मद सअव का सच्चा उत्तराधिकारी मानने लगा तो दूसरा गुट उम्र, काबलियत और वरिष्ठता को तवज्जो देते हुए चुने हुए खलीफाओं को इस्लाम का उत्तराधिकारी मानने लगा। पहला गुट शिया विचारधारा वाला और दूसरा गुट सुन्नी विचारधारा का कहलाने वाला बना। इन्ही दो विचाारधाओं में मुस्लिम दुनिया बंटी हुई है।
कुछ दिन पूर्व सऊदी अरब की तेल भंडारण कंपनी आरामको पर हूतो विद्रोहियों ने ड्रोन से हमला कर सऊदी अरब को चुनौती दी थी। सऊदी अरब का मानना है कि हूतो संगठन के पीछे ईरान का हाथ है जो उसे नुकसान पहुंचाने में लगा रहता है। इसलिए सऊदी अरब ईरान के साथ आर पार की लड़ाई के मूड में है और यही अंतरराष्ट्रीय विषय विशेषज्ञों की चिंता का विषय बना है। सऊदी अरब और ईरान के समर्थन में मुस्लिम देश दो हिस्सों में बंट गए है। अमेरिका भी सऊदी अरब के साथ खड़ा है लेकिन ईरान की ताकत को भी जानता है इसलिए परोक्ष रुप से ईरान के खिलाफ जाना नहीं चाहता। कमाल की बात है कि सऊदी अरब का दुश्मन देश इस्रायल ईरान के खिलाफ है। इस्रायल नहीं चाहता कि दुनिया में ईरान के प्रभुत्व का विस्तार हो। रुस का रुख सऊदी अरब की तरफ है लेकिन ईरान के साथ जंग का समर्थन नहीं करता।
भारत का महत्व-
देश की एक अरब तीस करोड़ की विशाल आबादी में लगभग बीस फीसदी मुस्लिम है। इनमें सुन्नी विचारधारा के मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। शिया विचारधारा की संख्या कम जरुर है लेकिन अपनी विचारधारा को फैलाने के काम में जुटे हुए हैं। माना जाता है कि भारत में शिया विचारधारा का फैलाव 16 वीं सदी के उत्तरार्ध में बादशाह जहांगीर के शासन काल में उनकी बेगम नूरजहाँ के कारण अधिक हुआ। सुन्नी के मुकाबले शियाओं में शिक्षा की जागृति अधिक है। देश में मुस्लिमों की बड़ी आबादी के कारण इस्लामी देश भारत को बहुत महत्व देते हैं।
भारत की भूमिका
मध्य पूर्वी तथा दक्षिण एशिया में भारत एक मजबूत और ताकतवर देश होने के बावजूद सऊदी अरब और ईरान के साथ भी अपने रिश्ते मजबूत किए हुए है। दोनों देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक हित जुड़े हुए है। सऊदी अरब और ईरान के बीच संभावित जंग में भारत की भूमिका तटस्थ अंपायर की बन सकती है क्यूं कि अमेरिका ने ईरान समर्थित हूतो विद्रोहियों के खिलाफ अपने सैनिक सऊदी अरब भेजने को तैयार हो गया है तो रुस ईरान के विरुद्व किसी भी जंग में अमेरिकी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा। इसलिए यदि सऊदी अरब और ईरान की जंग छिड़ती है तो यह वैश्विक स्तर पर फैल सकती है। भारत के प्रतिद्वंदी देशों के साथ समान रुप से संबंध बने हुए हैं। भारत दोनों देशों के बीच कड़ी बनकर क्षेत्र में शातिं बहाली करा सकता है क्यूं कि दोनों ही देश भारत को अपना पुराना पारंपरिक दोस्त मानते हैं और भारत ने भी दोनों देशों के साथ पुराने दोस्ताना रिश्तों को कायम रखा है। यही कारण है कि भारत की ओर से इस प्रकरण पर अभी तक कोई बयान नहीं आया है और ना ही अभी कोई अवश्यकता भी है।
-मुजफ्फर अली
लेखक वरिष्ठ पत्रकार, भारत और इस्लामिक देशों के बीच संबंधों पर टिप्पणीकार तथा मुस्लिम वल्र्ड मीडिया के प्रोमोटर हैं।

error: Content is protected !!