जब रावण ने मरने से मना कर दिया

शिव शंकर गोयल
खबर है कि उत्तर प्रदेष में एक स्थान पर रावण ने राम के हाथों मरने से इंकार कर दिया. वैसे तो उत्तर प्रदेष जबसे मुलायमसिंहजी के कहने पर अमिताभ बच्चन के हाथों ‘उत्तम प्रदेष’ बना, लगातार सुर्खियों में रहा हैं लेकिन इस खबर ने तो सबको चौंका दिया. जनता को अब यही कुछ देखने सुनने को बाकी रह गया हैं ?
लोग स्थान स्थान पर चर्चा कर रहे है कि आज रावण ने मरने से इंकार किया कलको कंस भी श्रीकृष्ण के एवं हिरण्यकष्युप नृसिंह भगवान के हाथों मरने से मना कर देगा तो फिर भ्रष्टाचाररूपी दानव भारत की जनता के हाथों क्यों मरना चाहेगा ? इस तरह तो दानवों की ताकत बढती चली जायेगी, वैसे भी एक कहावत है ‘इविल ऐलीमेन्टस गैटस टूगैदर अर्ली’ यानि दानवों में एकता जल्दी होती हैं. यह बात आजकल आप स्वयं अपने चारों तरफ देख ही रहे हैं.
खोजी लोगों ने रावण के इस दुस्साहस की खोजबीन की हैं. उनका कहना है कि परम्परागत दषहरें पर रावण के दस सिर एवं उन पर एक गधें का प्रतीक बनाकर उसका वध किया जाता हैं. गधें को वाहन बनाकर रोजी रोटी कमानेवालों ने एक स्थान पर एतराज उठाया कि रावण परिवार के साथ 2 गधें को क्यों जलाया जाता हैं. कुछ लोग तो यहां तक बताते है कि इस बारे में ‘अरेबियन नाइटस’ के नायक ख्वाजा नसरूद्धीन जिनका वाहन गधा था एवं ‘एक गधे की आत्म कथा’ लिखनेवाले स्वर्गीय कृष्णचंदर के चाहनेवालों की तरफ से भी सरकार के पास विरोधपत्र भेजा जा सकता हैं. जो भी हो बढते हुए विरोध को देखते हुए केन्द्र सरकार इसकी जांच हेतु ‘जीओएम’ यानि ग्रुप ऑफ मिनिस्टर बैठा सकती है ताकि और मसलों की तरह इस मामलें को भी अनिष्चतकाल के लिए टाला जा सके.
कुछ लोगों का इससे भिन्न मत हैं. उनका कहना है कि दषहरें पर रावण के मुख्य चेहरे के अलावा 9 चहरें और बनाये जाते हैं. अटलजी की सरकार के समय 5 चेहरें दाहिनी तरफ और 4 चेहरें बांयी तरफ बनाये जाने लगे.

लेकिन जब यूपीए प्रथम की सरकार बनी तो बामपंथी प्रकाष करात ने सोनियागांधी के कान में क्या फूंका कि उनकेे दवाब में इस क्रम को उलटकर बांयी तरफ 5 तो दाहिनी तरफ 4 चहरें बनाये जाने लगे.
यूपीए 2 में जब यह दवाब नही रहा तो फिर इस क्रम को उलट दिया गया. कहते है कि इस बार बार के बदलाव से रावण की छवी खराब हो रही थी तब से ही वह नाराज था और अब मौका देखकर उसका गुस्सा फट पडा नतीजतन उसने मरने से मना कर दिया. उसका यह भी कहना था कि रस्म ही तो है नही निभानी उसे ऐसी रस्म ! देष में मेरे अलावा भी तोे और है कई रावण, उन्हें क्यों नही जलाते ?.
प्रत्यदर्षी बताते है कि उस दिन रावण को खूब समझाया, बुझाया गया. पहले ईषारों में कहा गया फिर पर्दें के पीछे डॉयलॉग के माध्यम से कहा गया जैसे कई राजनीतिक दलों में होता हैं, ‘कि बस, अब बहुत हो गया, लेकिन रावण है कि अटहास कर करके, तलवार लहरा लहराकर हटने का नाम नही लें. थोडी देर तो आयोजकों ने उसे सहा लेकिन जब भीड में बैठे गलत लोग उसका साथ देने लगे तो रामलीला कमेटी के संचालक, जो अपने आपको मठाधीष कहलवाने में संकोच करते थे’ ने धक्का-मुक्की का सहारा लिया. इससे स्थिती और बिगडी तथा रावण की मदद हेतु न केवल कुंभकर्ण, मेघनाथ, अहिरावण बल्कि विभिषण तक कूद पडा. पत्रकारों द्वारा पूछने पर विभीषण ने सफाई दी कि क्या आयाराम-गयाराम आजके राजनीतिज्ञ ही कर सकते है, हम नही कर सकते ? मैं रावण का मां जाया भाई हूं, आखिर खून खून होता है और पानी पानी !
उपरोक्त समाचारों के साथ साथ यह भी खबर थी कि आधुनिक रावण को राम के साथ युद्ध करने में मजा आ रहा था, ठीक ऐसे जैसे केन्द्र सरकार को जनता की असली समस्याओं के साथ नूरा कुष्तीे करने में मजा आ रहा हैं. लोगों का कहना है कि जैसे रावण का वध हुआ अन्तोगत्वा महंगाई और भ्रष्टाचाररूपी रावण का वध भीे होना ही हैं.

शिव शंकर गोयल

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