…राजनीतिक पार्टियों के लिए अग्निपरीक्षा साबित होगा यूपी का यह उपचुनाव

रीता विश्वकर्मा
बीते लोकसभा चुनाव 2019 के उपरान्त उत्तर प्रदेश सूबे की रिक्त हुई 11 विधानसभा सीटों के लिए विस उपचुनाव हो रहा है। प्रमुख राजनैतिक दलों के साथ ही निर्दलीय व स्वतंत्र प्रत्याशियों ने अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए एड़ी का पसीना चोटी करना शुरू कर दिया है। बता दें कि उत्तर प्रदेश की 11 विस सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में मतदान 21 अक्टूबर व मतगणना 24 अक्टूबर को सम्पन्न हो जाएगी। इसी के उपरान्त पता चलेगा कि किस पार्टी के प्रत्याशी ने क्षेत्र में विजय हासिल कर प्रदेश की विधानसभा में पार्टी का परचम लहराया।
इस समय भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी प्रमुख राजनैतिक पार्टियों ने अपने-अपने कैंडीडेट को विजयी बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। रैली, लघु/ दीर्घ जनसभाएँ, घर-घर जनसम्पर्क, मतदाता मिलन उनका नमन जैसा हर चुनावी हथकण्डा अपना कर अपने पक्ष में मतदान करने की अपील पार्टी प्रत्याशियों द्वारा किया जा रहा है। जहाँ सत्ता पक्ष द्वारा प्रदेश व केन्द्र में अपनी सरकारों द्वारा कराये गए विकास व जनकल्याणकारी कार्यों को गिनाया जा रहा है वहीं विपक्षी पाटियों द्वारा लोगों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर क्षेत्र में विकास की गंगा बहाये जाने जैसे राजनैतिक वायदे किए जा रहे हैं। बावजूद इसके मतदाताओं की सनातनी (पारंपरिक) चुनावी चुप्पी देखने लायक है।
उत्तर प्रदेश में सभी 11 विधानसभा क्षेत्रों में इस समय चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। इन क्षेत्रों में प्रमुख पार्टियों के स्टार प्रचारकों द्वारा प्रत्याशियों को विजय श्री दिलाने के लिए लच्छेदार चुनावी सम्बोधन के जरिये मतदाताओं को अपनी तरफ आकृष्ट कराया जा रहा है। इस उपचुनाव को यह माना जा रहा है कि यह अगला विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारी है। उपचुनाव के परिणाम उपरान्त पार्टियाँ व दल 2022 की चुनावी तैयारी हेतु ऐसी रणनीति बनायेंगी, जिससे उनकी जीत सुनिश्चित हो और शासन सत्ता में आ सकें।
हम यहाँ उत्तर प्रदेश के कुछ विधानसभा क्षेत्रों का चुनावी सेनेरियो प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसे पढ़कर यह सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि किस क्षेत्र में किस पार्टी प्रत्याशी को विजयश्री मिल सकती है। यहाँ बताना आवश्यक है कि चार प्रमुख दलों में सपा और बसपा को यह माना जाता है कि इन दोनों पार्टियों के पास आधार के रूप जातीय मतदाता हैं। मसलन बसपा के पास दलित मतदाताओं का वोट बैंक इसका आधार कहा जाता है वहीं सपा का अहीर, मुसलमान व अन्य पिछड़ी जाति को आधार वोट माना जाता है। भाजपा और कांग्रेस के पास कोई आधार वोट बैंक नहीं है। भाजपा प्रत्याशी के लिए मतदान की अपील करने वाले राजनैतिक धुरन्धर/समर्थक व स्टार प्रचारक विकास कार्यों/ढेरों उपलब्धियों का बखान करते हैं वहीं कांग्रेस जिसने पूरे उत्तर प्रदेश में अपना अस्तित्व ही समाप्त कर दिया है वह पुर्नजीवित होने के लिए प्रयासरत है। कांग्रेस पार्टी के प्रचारक अपनी पुरानी पार्टी के कृत्यों और नेताओं के इतिहास का हवाला देकर लोगों के बीच में जा रहे हैं और पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि भाजपा और कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियों के पास कोई आधार वोटबैंक नही है। विडम्बना यह भी है कि इन पार्टियों के प्रत्याशियों के स्वजातीय मतदाताओं में भी एका नहीं दिखती।
लब्बो-लुआब यह कि विधानसभा उपचुनाव उत्तर प्रदेश सूबे के सभी पॉलिटिकल पार्टीज और पॉलिटीशियन्स के लिए अग्नि परीक्षा साबित हो रहा है। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए राजनीति के धुरन्धरों ने कुछ ऐसा करना शुरू कर दिया है जो चुनाव परिणाम को उनकी पार्टी व प्रत्याशी के पक्ष में कर दे। -रीता विश्वकर्मा, सम्पादक-रेनबोन्यूज डॉट इन।

हमारे सर्वेक्षण के अनुसार-
उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां बढ़ी हुई हैं। उपचुनाव को वैसे सत्ताधारी दल के दबदबे के रूप में देखा जाता है लेकिन इस मामले में बीजेपी का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। उपचुनावों में पार्टी को कई मौकों पर करारी हार का सामना करना पड़ा है। इस बार के उपचुनाव में भी भाजपा को विपक्षी दलों से तगड़ी चुनौती मिलती दिखाई दे रही है। यूपी की 11 में से 5 ऐसी सीटें हैं जहां विपक्षी दल सत्ताधारी दल का खेल बिगाड़ सकते हैं या यह कहा जाए कि इन पाँच विधान सभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनाव (2019) भाजपा के लिए ऐसे पनघट से हैं जहाँ की डगर बहुत ही कठिन है और वहाँ पहुँचने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ सकते हैं।

रामपुर विधानसभा सीट
रामपुर की सीट पर पूर्व कैबिनेट मंत्री और सपा सांसद आजम खान का दबदबा रहा है। 1996 को छोड़कर इस किले में कभी दोबारा सेंध नहीं लगाई जा सकी है। 1996 में कांग्रेस उम्मीदवार अफरोज अली खान ने आजम खान को हराया था। इसे छोड़कर आजम खान 1980 से हर बार चुनाव जीतते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में रामपुर संसदीय सीट से जीतकर सांसद बनने के बाद उन्होंने ये सीट छोड़ दी थी। बीजेपी की स्थिति यहां पर कुछ खास अच्छी रही नहीं है। पार्टी को तीसरे और चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ा है। लेकिन 2017 में पार्टी ने इस सीट पर दूसरा स्थान हासिल किया। यूपी की रामपुर सीट से बीजेपी ने भारत भूषण गुप्ता को उपचुनाव में उतारा है जिनके सामने आजम खान की पत्नी तंजीन फातिमा हैं।

जलालपुर सीट
अम्बेडकरनगर की जलालपुर विधानसभा सीट, जिसे बसपा का गढ़ माना जाता है और इस सीट पर दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण समुदाय की अच्छी खासी संख्या है। अम्बेडकरनगर संसदीय सीट पर बसपा के रितेश पांडे ने जीत दर्ज की थी और इस तरह जलालपुर की विधानसभा सीट रिक्त हुई थी। बीजेपी को यहां 1996 में पहली बार जीत मिली थी, लेकिन इसके बाद से बीजेपी इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी है। पार्टी को यहां जीत तो दूर, तीसरे और चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा है। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के राजेश सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे। इस चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने के बाद बीजेपी यहां से जीत दर्ज करने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन पार्टी के लिए जलालपुर सीट से जीत दर्ज करना इतना आसान नहीं रहने वाला है। हालांकि, पार्टी की उम्मीदें विपक्षी दलों के बिखराव पर भी टिकीं हैं।

घोसी विधानसभा सीट
भाजपा के लिए दूसरी चुनौती घोसी विधानसभा सीट है, जहां पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनावों में बहुत ही कम अंतर से जीत मिली थी। तत्कालीन भाजपा उम्मीदवार फागु चौहान ने पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बावजूद केवल 7,000 वोटों से जीत हासिल की थी। दूसरे स्थान पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार थे, जिन्हें 34 फीसदी वोट मिला था। फागु चौहान को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किए जाने के बाद यह सीट खाली हुई थी। इस बार यहां से विजय राजभर को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे राजभर को विपक्षी दलों से कड़ी टक्कर मिल सकती है।

जैदपुर सीट
बाराबंकी जिले की जैदपुर सीट पर भी बीजेपी को काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। यहां, बाराबंकी से सांसद रहे पीएल पुनिया के बेटे तनुज चुनाव मैदान में हैं। पुनिया परिवार का बाराबंकी में खासा प्रभाव माना जाता है। हालांकि, बीजेपी के हाथों तनुज पुनिया दो बार बाराबंकी से हार चुके हैं, लेकिन अबकी भी इस सीट पर वे बीजेपी को कड़ी टक्कर देते दिखाई दे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में तनुज पुनिया 30 हजार वोटों से हारे थे। यहां 10 फीसदी वोटों के अंतर को लेकर बीजेपी भी आश्वस्त रहना नहीं चाहेगी। सियासी जानकारों का मानना है कि जैदपुर से बीजेपी के अंबरीश रावत को कड़ी चुनौती मिल सकती है।

गंगोह सीट
गंगोह सीट को हल्के में नहीं ले सकती है बीजेपी पश्चिमी यूपी में भले ही बीजेपी ने विधानसभा चुनावों के दौरान जबरदस्त प्रदर्शन किया हो, लेकिन सहारनपुर की गंगोह सीट पर होने जा रहे उपचुनाव को पार्टी हल्के में नहीं ले सकती है। यहां मुकाबला तकरीबन चतुष्कोणीय रहा है। बीजेपी, सपा, बसपा के अलावा कांग्रेस भी इस सीट पर दमखम से चुनाव लड़ती है। आंकड़ों की बात करें तो साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 39 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस ने 24 फीसदी वोट हासिल किए थे। वहीं, सपा और बसपा को 18-18 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप कुमार 14 फीसदी से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। वोटों का स्विंग होना हमेशा इस सीट पर चर्चा का विषय रहता है, ऐसे में बीजेपी के कीरत सिह के लिए राह इतनी आसान नहीं दिखाई दे रही है।

रीता विश्वकर्मा
सम्पादक- रेनबोन्यूज डॉट इन
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