टीवी चैनलों पर कांग्रेस को खत्म करने की सुपारी लेकर बैठे कईएंकर हरियाणा और महाराष्ट्र में उसके प्रदर्शन पर अपने बाल नोंच रहे हैं। अपने टीवी शो में एंकर जिस तरह कांग्रेस को लताड़ते हैं और उसके समर्थक नेताओं की बेइज्जत करते हैं,उसे इन दोनों राज्यों में मतदाताओं ने जवाब दे दिया है ।
अब भारतीय जनता पार्टी को इस बात पर चिंतन करना होगा कि अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बूते वह हर राज्य में चुनाव नहीं जीत सकती और ना ही बार-बार राष्ट्रवाद,पाकिस्तान और कश्मीर को मुद्दा बनाकर मतदाताओं को स्थानीय मूल मुद्दों से दूर नहीं किया जा सकता है । भाजपा को यह मानना होगा कि मंदी,बेरोजगारी,महंगाई उद्योग धंधों की खस्ता हालत और हर क्षेत्र में घटता उत्पादन लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। भले ही टीवी चैनलों पर अपने मैनेजमेंट के कारण भाजपा इन मुद्दों पर चर्चा नहीं होने देती हो। लेकिन मतदाता महसूस करने लगा है कि बार-बार राष्ट्रवाद का ज्वार पैदा करके भाजपा उस पर सवार होकर उनके वोट बटोर लेती है।
दरअसल,मोदी की देश में अपार लोकप्रियता के चलते भाजपा के राज्य क्षत्रपों ने ये मान लिया कि उन्हें कोई काम करने की जरूरत नहीं है । मोदी है तो मुमकिन है का नारा उन्हें चुनाव जितवा देगा । बार बार कांग्रेस को खत्म करने और देश को कांग्रेस मुक्त करने की भाजपा की चुनौती या धमकी को मतदाताओं ने दोनों राज्यों में करारा जवाब दिया है। उसने यह बता दिया है कि किसी नेता के बोलने से कोई पार्टी खत्म नहीं हो सकती । उसे खत्म करना और बनाए रखना उसके वोटों पर निर्भर है। महाराष्ट्र में भले ही भाजपा- शिवसेना वापस सत्ता में लौट रही है, लेकिन उसे भाजपा को सीटों का नुकसान हुआ है । जबकि उसने वहां वीर सावरकर को भी चुनावी मुद्दा बनाने में कोताही नहीं बरती थी । इसी तरह हरियाणा में तो कई टीवी चैनल एग्जिट पोल में भाजपा को दो तिहाई तक बहुमत दे रहे थे । लेकिन कांग्रेस ने वहां के तमाम नेताओं में मतभेदों के बावजूद उसने अच्छी वापसी की है। यह ठीक है कि भाजपा ने दोनों राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थान बनाया है। लेकिन कुछ ही महीने पहले दोनों राज्यों में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली बड़ी सफलता के बीच इन यह गौम नजर आती है । वह भी तब जब उसका प्रचार अभियान प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह जैसे दिग्गज नेताओं के हाथ में था ।
भाजपा के लिए चिंता की बात यह भी है कि देश के अन्य राज्यों में हुए उपचुनाव में उसे ज्यादा कामयाबी नहीं मिली है, जिसकी उसे उम्मीद थी । ऐसे में सवाल यह है कि क्या भाजपा अब देश के मूल मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी और लोगों को महंगाई बेरोजगारी आर्थिक मंदी से मुक्ति दिलाने की कोशिश करेगी। भाजपा की कम हुई लोकप्रियता पर एक कारण उसके नेताओं के अहंकार वाली भाषा भी है । मतदाता किसी का भी अहंकार स्वीकार नहीं करता है , क्योंकि अंहकारी तो खुद मतदाता को होना चाहिए ,जो अपने वोटों से देश की और राज्यों की सरकारें चुनता है। देखना होगा भाजपा इन परिणामों का किस तरह से आत्मावलोकन करती है।
ओम माथुर,/9351415379