*विचार प्रवाह*

नटवर विद्यार्थी
अभिनय भी एक बहुत बड़ी कला है । हमें तो क़ुदरत ने ऐसी मासूम शक़्ल भी नहीं दी जो अभिनय कर सकें । एक -दो बार दाढ़ी बढ़ाकर मजनूँ बनने की कोशिश की थी पर घरवालों ने नाई बुलाकर सिर के बाल और कटवा दिए । बचपन में ग्लिसरीन की डिब्बी हाथ लग गई । अपनी बात मनवाने के लिए रोने का अभिनय किया किन्तु पकड़े गए । ज़िद्द भी पूरी नहीं हुई और मार अलग से पड़ी । नाराज़ होने का अभिनय भी भारी पड़ता था , दो – चार चांटे ऊपर से पड़ते और फिर अपने आप लाईन पर आ जाते थे ।
आज की दुनिया तो पूरी तरह अभिनय पर टिकी है । हर कोई डुप्लीकेट नज़र आ रहा है । चेहरे बदलने में लोग इतने माहिर हो गए है कि सच और झूठ में अंतर करना मुश्किल हो गया है । ख़री बात कड़वी होती है पर किसी ने क्या खूब कहा है –
ये अलग बात है कि बाहर से बना है जोगी ,
आज के दौर में हर शख्स रावण की तरह है ।
आज के तथाकथित बाबाओं ने तो अभिनय की हद ही कर दी । संतोष की बात है कि अब वे सलाखों के पीछे है । राजनीति भी तो अभिनय का ही खेल है । वादों का जाल फेंककर मछलियों ( जनता ) को फंसाने का अभिनय ही तो कर रहे हैं ये सब ।किसी शायर ने कितना सटीक कहा है –
हैं सियासत के मछेरे , जाल फैलाए हुए ।
हम सब है मछलियाँ , जाए तो कहाँ जाए ?

– नटवर पारीक

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