*विचार – प्रवाह*

नटवर विद्यार्थी
“रघुकुल रीत सदा चली आई , प्राण जाए पर वचन ना जाई ” इस रीत ( मर्यादा ) को निभाने के लिए महाराजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए और राम ने राजसत्ता , धन और वैभव को ठुकराकर वनवास स्वीकार कर लिया । मर्यादा पूजी जाती है । जिसने भी मर्यादा का पालन कर लिया वह पूजनीय बन गया । राम , मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम बन गए ।
मर्यादा का शाब्दिक अर्थ उन सभी नियमों की पालना करना है जो समाज ने बनाए हैं । जो व्यक्ति इन नियमों की पालना करता है वह मर्यादित व्यक्ति होता है । यह ज़रूरी नहीं है कि नियम लिखित हो , समाज की परंपरा ही नियम बन जाती है । मर्यादाएँ समाज की सौंदर्य होती है , दिग्दर्शक होती है जो हमारे जीवन को सुंदर , मर्यादित और अनुशासित बनाती है ।
मर्यादा में रहना कोई बोझ नहीं है , बुरी बात नहीं है । मर्यादा तो एक जीवन मूल्य है , अनुशासन है , इसकी सार्थकता तो उसे ही ज्ञात हो सकती है जो इसे आचरण में लाता है ।
एक बात और है ,महात्मा गाँधी ने एक जगह लिखा है ” अपने कमरे की खिड़कियाँ हमेशा खुली रखो जिससे नई हवा अंदर आ सके और पुरानी हवा बाहर जा सके ” अतः समय और परिस्थिति के अनुसार रूढ़ता का त्याग भी जरुरी है यदि मर्यादा पर आँच न आए ।

– नटवर पारीक

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